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📌 प्रस्तावना
भारत की भूमि सदियों से रहस्यों, चमत्कारों और अध्यात्म की भूमि रही है। इन रहस्यों में से एक है – भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों का रहस्य। पुरी स्थित श्रीमंदिर के अंदर स्थापित ये मूर्तियाँ न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि इनमें छिपे गूढ़ रहस्य आज भी वैज्ञानिकों और श्रद्धालुओं के लिए एक जिज्ञासा बने हुए हैं। इस लेख में हम जानेंगे भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों का इतिहास, निर्माण, नवीनीकरण, चमत्कार और उनसे जुड़ी वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली बातें।
🛕 अध्याय 1: भगवान जगन्नाथ कौन हैं?
भगवान जगन्नाथ को विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का एक विशेष रूप माना जाता है। जगत के नाथ होने के कारण उन्हें “जगन्नाथ” कहा जाता है। साथ ही उनके साथ बलराम (बड़े भाई) और सुभद्रा (बहन) की भी पूजा होती है। ये तीनों मूर्तियाँ मंदिर में एक साथ विराजमान हैं।
🌳 अध्याय 2: मूर्तियों का अनोखा रूप
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियाँ सामान्य देवमूर्तियों की तरह नहीं होतीं:
- इनका चेहरा गोल होता है, आँखें बड़ी और खुली होती हैं।
- हाथ और पैर अधूरे होते हैं।
- यह रूप श्रीकृष्ण की उस अवस्था को दर्शाता है जब वे सुदर्शन चक्र में विलीन हो गए थे – यह एक रहस्यात्मक, योगिक और भक्ति भाव का प्रतीक है।
🌲 अध्याय 3: लकड़ी की मूर्ति – दारु ब्रह्म का रहस्य
जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ पत्थर की नहीं बल्कि नीम की लकड़ी (विशेष ‘दारु ब्रह्म’) से बनाई जाती हैं।
- यह लकड़ी विशेष लक्षणों वाली होती है: उसमें कोई गाँठ नहीं होती, और वह स्वयं ही समुद्र किनारे प्रकट होती है।
- पुजारीगण ध्यान और संकेतों से यह लकड़ी पहचानते हैं।
🔁 अध्याय 4: मूर्तियों का नवीनीकरण – ‘नबकल्लेबर‘ (Nabakalebara)
हर 12 से 19 साल में भगवान जगन्नाथ और उनके सहचर की मूर्तियाँ बदली जाती हैं। इस प्रक्रिया को नबकल्लेबर कहते हैं।
- ‘नब’ = नया, ‘कलेबर’ = शरीर
- यह तभी होता है जब आषाढ़ मास में पूर्णिमा दो बार आती है।
- पुरानी मूर्तियाँ को गुप्त रूप से समाधि दी जाती है।
🔮 अध्याय 5: ब्रह्मतत्त्व का स्थानांतरण
मूर्ति निर्माण का सबसे रहस्यमयी चरण होता है – ब्रह्मतत्त्व का स्थानांतरण।
- यह तत्व भगवान का “अमर अंश” है – कुछ इसे श्रीकृष्ण का दिल मानते हैं।
- यह स्थानांतरण रात में, अंधेरे में, आंखों पर पट्टी बांधकर किया जाता है।
- इस प्रक्रिया के दौरान किसी भी व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है यदि नियमों का उल्लंघन हो जाए।
🧿 अध्याय 6: अधूरी मूर्तियाँ – परिपूर्ण प्रतीक
भगवान की मूर्तियाँ अधूरी क्यों होती हैं?
- यह प्रतीक है “अधूरे शरीर में भी परिपूर्ण आत्मा” का।
- श्रीकृष्ण जब राधा की कथाओं को सुनते-सुनते भावविभोर हुए, उसी अवस्था को मूर्त रूप में दर्शाया गया है।
🍛 अध्याय 7: भगवान को भोग – महाप्रसाद का रहस्य
भगवान को जो भोजन अर्पित किया जाता है, वह महाप्रसाद कहलाता है। इसमें भी कई रहस्य हैं:
- प्रसाद कभी खराब नहीं होता।
- पकाते समय कोई स्वाद नहीं चखता, फिर भी हर दिन स्वाद अलग होता है।
- भगवान को अर्पण के बाद ही जनता को दिया जाता है।
🌬️ अध्याय 8: क्या मूर्तियाँ सांस लेती हैं?
कई लोगों का दावा है कि जगन्नाथ की मूर्तियों से रात में कंपन और श्वास जैसी ध्वनि आती है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार यह लकड़ी के अंदर प्राकृतिक कंपन और आयुर्वेदिक लेपों के कारण हो सकता है।
- भक्त इसे भगवान की जीवंतता मानते हैं।
🧲 अध्याय 9: रहस्यमयी चुंबकीय प्रभाव
पुरी मंदिर के शिखर पर स्थापित सुदर्शन चक्र और मूर्तियों में चुंबकीय प्रभाव भी देखा गया है:
- मंदिर में प्रवेश करते समय आपकी छाया नहीं दिखती।
- समुद्र से आने वाली हवाएं मंदिर की दीवारों से टकराकर शांत हो जाती हैं।
- यह भी माना जाता है कि मूर्तियों के पास ऊर्जा केंद्र है जो भक्त को कंपन (vibration) का अनुभव देता है।
🙌 अध्याय 10: भक्तों से जुड़ाव का रहस्य
भगवान की मूर्तियाँ भक्तों से कैसे जुड़ती हैं?
- उनकी बड़ी-बड़ी आँखें हर ओर देखने का भ्रम देती हैं।
- भक्त को लगता है – “भगवान सिर्फ मुझे देख रहे हैं।”
- यह आध्यात्मिक एकत्व और निर्विकार प्रेम का प्रतीक है।
🧪 अध्याय 11: वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुछ वैज्ञानिक दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं:
- लकड़ी पर आयुर्वेदिक लेप – मूर्ति को सड़ने से रोकता है।
- कंपन ऊर्जा – आध्यात्मिक ऊर्जा नहीं, बल्कि भौतिक कंपन हो सकता है।
- चुम्बकीय क्षेत्र – पुरी मंदिर के नीचे एक चुंबकीय पत्थर या धातु संरचना हो सकती है।
📚 अध्याय 12: पुराणों में उल्लेख
- स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण में जगन्नाथ मूर्तियों के रहस्यों का वर्णन मिलता है।
- श्रीकृष्ण के देहांत के बाद उनकी भुजाएँ बहकर समुद्र में आईं और वही ब्रह्मतत्त्व बनीं।
🌏 अध्याय 13: वैश्विक महत्त्व और विदेशी जिज्ञासा
- विदेशी शोधकर्ताओं ने भी मूर्तियों की नबकल्लेबर प्रक्रिया पर डॉक्युमेंट्री बनाई है।
- इसे World’s only living God कहा गया है।
🔚 निष्कर्ष:
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियाँ सिर्फ एक धार्मिक संरचना नहीं, बल्कि एक जीवंत चेतना का केंद्र हैं। उनमें भक्ति, रहस्य, विज्ञान और परंपरा – सबका अद्भुत संगम है। ये मूर्तियाँ हमें सिखाती हैं कि “परमात्मा रूप से नहीं, भाव से पहचाने जाते हैं।”