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1. प्रस्तावना: पुत्रदा एकादशी का आध्यात्मिक महत्व
सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। माना जाता है कि वर्ष भर में आने वाली 24 एकादशियों में से प्रत्येक का अपना अनूठा महत्व है, परंतु पुत्रदा एकादशी ऐसी एकादशी है जो विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति और संतान के कल्याण के लिए मानी जाती है। ‘पुत्रदा’ शब्द का अर्थ है – पुत्र देने वाली। यह व्रत उन दंपत्तियों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं या अपनी संतान के उत्तम जीवन और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
यह व्रत केवल संतान के लिए ही नहीं, बल्कि पुण्य, मोक्ष और पाप क्षय के लिए भी समान रूप से फलदायी है। पुराणों में वर्णन है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान विष्णु का व्रत और पूजन करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
2. पुत्रदा एकादशी की तिथि और समय (2025)
2025 में कब है पुत्रदा एकादशी?
वर्ष 2025 में दो पुत्रदा एकादशी पड़ेंगी –
- पौष पुत्रदा एकादशी – पौष मास में आती है (जनवरी के आसपास)
- श्रावण पुत्रदा एकादशी – श्रावण मास में आती है (अगस्त के आसपास)
पौष पुत्रदा एकादशी 2025 की तिथि
- एकादशी व्रत प्रारंभ: 6 जनवरी 2025, सोमवार
- एकादशी तिथि आरंभ: प्रातः 04:35 बजे से
- एकादशी तिथि समाप्त: 7 जनवरी 2025, प्रातः 06:12 बजे तक
- पारण का समय: 7 जनवरी 2025, प्रातः 07:10 बजे से 09:12 बजे तक
श्रावण पुत्रदा एकादशी 2025 की तिथि
- एकादशी व्रत प्रारंभ: 6 अगस्त 2025, बुधवार
- एकादशी तिथि आरंभ: 5 अगस्त 2025, रात्रि 11:40 बजे से
- एकादशी तिथि समाप्त: 6 अगस्त 2025, रात्रि 01:50 बजे तक
- पारण का समय: 7 अगस्त 2025, प्रातः 06:00 बजे से 08:20 बजे तक
(नोट: पंचांग के अनुसार समय क्षेत्र में थोड़े बहुत अंतर हो सकते हैं। स्थानीय पंचांग अवश्य देखें।)
3. पुत्रदा एकादशी का नाम क्यों पड़ा?
‘पुत्र’ का अर्थ है संतान और ‘दा’ का अर्थ है देने वाली। इसका अर्थ हुआ संतान देने वाली एकादशी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत उन दंपत्तियों के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है जिन्हें संतान सुख की प्राप्ति में बाधाएँ आ रही हों।
इसके अलावा यह व्रत संतान के उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु और अच्छे चरित्र के लिए भी रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करने से न केवल संतान प्राप्ति होती है बल्कि पूर्वजों के पाप भी क्षीण हो जाते हैं।
4. दो प्रकार की पुत्रदा एकादशी
4.1 पौष पुत्रदा एकादशी
- पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी
- विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रसिद्ध
- संतानहीन दंपत्तियों द्वारा व्रत रखा जाता है
4.2 श्रावण पुत्रदा एकादशी
- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी
- वर्षा ऋतु में आने के कारण दक्षिण भारत में भी मनाई जाती है
- संतान की रक्षा और कल्याण के लिए व्रत
5. पौराणिक कथा: राजा सुकेतु और रानी शैव्या की कहानी
पुत्रदा एकादशी की कथा का वर्णन भविष्य पुराण और हरिवंश पुराण में मिलता है। कथा इस प्रकार है:
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतु नामक राजा राज्य करते थे। वे धर्मात्मा, दानी और प्रजा पालक थे, लेकिन उनके जीवन में एक दुःख था – उन्हें कोई संतान नहीं थी। संतानहीन होने के कारण वे और उनकी रानी शैव्या हमेशा चिंतित रहते थे।
एक दिन दुखी होकर राजा सुकेतु घोड़े पर सवार होकर वन की ओर निकल गए। उन्होंने सोचा – “मेरे पापों के कारण ही मुझे संतान सुख नहीं मिला। मुझे अब तपस्या करनी चाहिए।”
वन में भटकते-भटकते वे एक पवित्र झील के पास पहुँचे, जहाँ कई मुनि तपस्या कर रहे थे। राजा ने मुनियों को प्रणाम कर अपनी समस्या सुनाई।
मुनियों ने कहा –
“हे राजन! पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुत्रदा एकादशी’ कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत और पूजन करो। संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।”
राजा ने वैसा ही किया। व्रत पूर्ण होने पर उन्हें आकाशवाणी हुई –
“हे राजन! तुम्हें शीघ्र ही पुण्यशील और तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी।”
कुछ समय बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। वही पुत्र आगे चलकर एक महान राजा बना। इस प्रकार पुत्रदा एकादशी व्रत से राजा को संतान सुख की प्राप्ति हुई।
6. व्रत-विधि: पुत्रदा एकादशी कैसे करें?
6.1 व्रत से पहले की तैयारी (दशमी तिथि)
- दशमी तिथि की रात को सात्विक भोजन करें।
- तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस आदि) का परहेज करें।
- व्रत का संकल्प लें – “मैं पुत्रदा एकादशी का व्रत करूंगा/करूंगी, भगवान विष्णु की कृपा से संतान सुख की प्राप्ति हेतु।”
6.2 एकादशी व्रत का पालन
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के मंदिर या पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- भगवान विष्णु का पीले वस्त्रों और फूलों से श्रृंगार करें।
- धूप, दीप, अक्षत, पंचामृत, तुलसी दल अर्पित करें।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें।
- व्रत के दिन केवल फलाहार या निर्जल उपवास करें।
- रात्रि में जागरण कर भगवान विष्णु के भजन गाएँ।
6.3 द्वादशी को पारण
- अगले दिन स्नान कर भगवान विष्णु की आरती करें।
- दान में अन्न, वस्त्र और दक्षिणा ब्राह्मण को दें।
- पारण के बाद सामान्य भोजन ग्रहण करें।
7. पुत्रदा एकादशी का वैज्ञानिक महत्व
- मानसिक शांति: व्रत रखने से मानसिक संयम और धैर्य बढ़ता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: विष्णु मंत्र जाप से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- संतान की मानसिक शक्ति: गर्भवती महिलाओं के लिए व्रत के दौरान मंत्रोच्चारण और भक्ति भाव शिशु पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
- डिटॉक्सिफिकेशन: उपवास शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है और पाचन तंत्र को आराम देता है।
8. पुत्रदा एकादशी का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र में एकादशी व्रत को पाप नाशक और पुण्य दायक माना गया है। पुत्र प्राप्ति में बाधा डालने वाले पुत्र दोष, पित्र दोष और संतान योग की अशुभता को यह व्रत कम करता है। विशेषकर यदि किसी के कुंडली में पंचम भाव कमजोर हो, तो यह व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है।
9. संतान सुख के लिए विशेष मंत्र
9.1 पुत्रदा मंत्र
“ॐ देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः॥”
9.2 विष्णु बीज मंत्र
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
10. दान-पुण्य का महत्व
व्रत के दिन दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- अन्न दान
- वस्त्र दान
- गाय को हरा चारा खिलाना
- ब्राह्मण को दक्षिणा देना
इन दानों से संतान सुख और पितरों की शांति प्राप्त होती है।
11. पुत्रदा एकादशी का सांस्कृतिक महत्व
ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह व्रत बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। कई परिवार इस दिन भजन-कीर्तन, कथा वाचन और जागरण करते हैं। महिलाएँ भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर संतान के लिए मंगलकामना करती हैं।
12. पुत्रदा एकादशी FAQ
प्रश्न 1: क्या पुत्रदा एकादशी केवल संतानहीन लोगों के लिए है?
उत्तर: नहीं, यह संतान के कल्याण के लिए भी रखी जाती है।
प्रश्न 2: क्या गर्भवती महिला व्रत रख सकती है?
उत्तर: हाँ, परंतु चिकित्सक की सलाह से फलाहार व्रत रखें।
प्रश्न 3: पुत्रदा एकादशी में क्या दान करें?
उत्तर: अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दान करें।
13. निष्कर्ष
पुत्रदा एकादशी व्रत केवल संतान प्राप्ति का साधन नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक सुख, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति भाव से करने पर भगवान विष्णु की कृपा से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
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