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भगवान विष्णु का क्षीरसागर (दूध का सागर) में शेषनाग पर शयन करना हिंदू धर्म के सबसे रहस्यमय और दिव्य प्रतीकों में से एक है। यह दृश्य हम अक्सर मंदिरों, चित्रों और पुराणों में देखते हैं — जिसमें भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम कर रहे होते हैं, उनके चरण दबाती हुई लक्ष्मी जी और समीप खड़े ब्रह्माजी, जो कमल से प्रकट हुए हैं।
पर सवाल यह है कि विष्णु समुद्र में ही क्यों शयन करते हैं?
और क्षीरसागर का रहस्य क्या है?
1. क्षीरसागर का आध्यात्मिक अर्थ
- क्षीरसागर कोई भौतिक महासागर नहीं बल्कि चेतना और सत्व का महासागर माना जाता है।
- “क्षीर” का अर्थ है दूध — जो शुद्धता, जीवन और पोषण का प्रतीक है।
- यह महासागर ब्रह्मांड की शांति और सृजन की मूल ऊर्जा (Primordial Energy) को दर्शाता है।
- समुद्र का अनंत जल ब्रह्मांड की अनंतता (Infinity) और विष्णु की सर्वव्यापकता का संकेत देता है।
2. भगवान विष्णु का समुद्र शयन क्यों?
(क) सृष्टि का संरक्षण
- विष्णु का कार्य है सृष्टि का पालन और संतुलन बनाए रखना।
- क्षीरसागर पर शयन का अर्थ है कि वे सृष्टि के मूल तत्वों में विश्राम करते हुए भी सक्रिय हैं।
- जैसे समुद्र बाहर से शांत दिखता है पर भीतर जीवन से भरा होता है, वैसे ही विष्णु का शयन है — शांत परंतु जीवनदायी।
(ख) योगनिद्रा का प्रतीक
- विष्णु का शयन वास्तव में योगनिद्रा है, जिसमें वे जाग्रत भी हैं और विश्राम में भी।
- योगनिद्रा का अर्थ है पूर्ण चेतना में विश्राम – जहां वे समय-समय पर जागकर अवतार लेते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।
(ग) समुद्र क्यों?
- समुद्र विशालता और गहराई का प्रतीक है।
- दूध का समुद्र सत्वगुण की गहराई को दर्शाता है, जिसमें विष्णु का निवास है।
- यह बताता है कि ईश्वर सत्व और शुद्धता में ही वास करते हैं।
3. शेषनाग का रहस्य
- शेषनाग को अनंत भी कहा जाता है।
- यह समय (काल) और अनंतता का प्रतीक है।
- विष्णु का शेषनाग पर शयन यह दर्शाता है कि वे समय और मृत्यु से परे हैं।
- शेषनाग के फन का छत्र विष्णु की रक्षा करता है – इसका अर्थ है आध्यात्मिक शरण में आने से सुरक्षा।
4. लक्ष्मी जी का चरण सेवा
- लक्ष्मी जी सदा विष्णु के चरणों में रहती हैं।
- यह दर्शाता है कि संपत्ति और समृद्धि वहीं रहती है जहां धर्म और संतुलन हो।
- चरण दबाने का अर्थ है कि समृद्धि का मूल भी सेवा और भक्ति में है।
5. ब्रह्माजी का कमल से प्रकट होना
- विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जिस पर ब्रह्मा विराजमान हैं।
- इसका अर्थ है कि सृष्टि का जन्म पालनकर्ता विष्णु की चेतना से होता है।
- यह भी बताता है कि सृजन, पालन और संहार — सब एक ही परमात्मा में स्थित हैं।
6. क्षीरसागर का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- दूध जीवन का पहला आहार है – प्रोटीन और पोषण का स्रोत।
- दूध का महासागर यह संकेत देता है कि सृष्टि की उत्पत्ति जीवनदायी तत्वों से हुई।
- समुद्र में शयन यह दर्शाता है कि पृथ्वी का जीवन जल पर आधारित है (70% जल से ढका है)।
- शेषनाग = ऊर्जा का कुंडलिनी रूप (Spinal energy), विष्णु = चेतना।
- जब ऊर्जा और चेतना एक होते हैं तब सृष्टि का संतुलन होता है।
7. प्रतीकात्मक संदेश
- समुद्र = मन की गहराई
- विष्णु = शुद्ध चेतना
- शेषनाग = अनंत काल
- संदेश यह है कि जब मन शांत (समुद्र), चेतना जाग्रत (विष्णु) और समय नियंत्रित (शेषनाग) हो — तब जीवन में शांति और संतुलन रहता है।
8. धार्मिक महत्व
- हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में जाते हैं।
- कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) को वे जागते हैं।
- इस चार महीने को चातुर्मास कहते हैं, जिसमें विवाह आदि शुभ कार्य नहीं होते।
- यह काल आध्यात्मिक साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
9. क्षीरसागर मंथन कथा
- देवताओं और असुरों ने अमृत पाने के लिए क्षीरसागर का मंथन किया।
- इससे चौदह रत्न निकले, जिनमें लक्ष्मी जी भी थीं।
- यह दर्शाता है कि समुद्र (मन) के मंथन से ही अमृत (ज्ञान) मिलता है।
10. निष्कर्ष
भगवान विष्णु का क्षीरसागर में शयन कोई साधारण दृश्य नहीं बल्कि गहन आध्यात्मिक, तात्त्विक और वैज्ञानिक प्रतीक है।
यह हमें बताता है कि –
- जीवन का आधार शुद्धता और संतुलन है।
- सृष्टि का पालनकर्ता हमेशा योगनिद्रा में रहते हुए भी सक्रिय रहता है।
- अनंत समय (शेषनाग) और शुद्ध चेतना (विष्णु) मिलकर ब्रह्मांड को धारण करते हैं।
- समृद्धि (लक्ष्मी) वहीं स्थायी है जहां धर्म और संतुलन है।