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हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन करना एक अत्यंत गूढ़ और रहस्यमय दृश्य है। समुद्र मंथन से लेकर ब्रह्मांड की रचना तक, हर कथा में शेषनाग और भगवान विष्णु का संबंध गहरा दिखाई देता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर भगवान विष्णु शेषनाग पर ही क्यों शयन करते हैं? क्या यह केवल पौराणिक प्रतीक है, या इसके पीछे गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक संदेश छुपा है? आइए इस रहस्य को विस्तार से समझते हैं।
1. शेषनाग कौन हैं?
शेषनाग को अनंतनाग भी कहा जाता है, क्योंकि उनके अनगिनत फन हैं। ‘शेष’ का अर्थ है ‘जो शेष रह जाए’, अर्थात जब ब्रह्मांड का अंत भी हो जाए, तब भी जो शेष रहे। यही कारण है कि उन्हें अनादि-अनंत माना जाता है।
- वे नागों के राजा माने जाते हैं।
- उनके फन पर पूरा ब्रह्मांड टिका है।
- विष्णु पुराण के अनुसार शेषनाग, भगवान विष्णु के अवतार लक्ष्मण और बलराम के रूप में भी अवतरित हुए।
- इन्हें शक्ति और संतुलन का प्रतीक माना जाता है।
2. विष्णु का क्षीरसागर में शयन
भगवान विष्णु को ब्रह्मांड का पालनहार कहा गया है। वे क्षीरसागर (दूध के सागर) में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में स्थित रहते हैं। यह क्षीरसागर कोई साधारण समुद्र नहीं, बल्कि चेतना और सृष्टि का महासागर है।
- क्षीरसागर = ब्रह्मांडीय चेतना
- शेषनाग = अनंत ऊर्जा और स्थिरता
- विष्णु का शयन = सृष्टि के बीच संतुलन और संरक्षण
3. पौराणिक कारण: शेषनाग का वचन
भागवत पुराण और महाभारत के अनुसार शेषनाग ने तपस्या कर ब्रह्मा और विष्णु से वर मांगा था कि उन्हें कभी क्रोध, मोह या पाप न लगे और वे भगवान की सेवा में सदा लगे रहें। विष्णु ने उन्हें अपनी शैय्या बनने का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार वे सृष्टि के अंत तक विष्णु के साथ रहेंगे।
4. शेषनाग का प्रतीकात्मक महत्व
(a) अनंत ऊर्जा का प्रतीक
शेषनाग के अनेक फन ब्रह्मांड में फैली अनंत ऊर्जा का संकेत हैं। यह दर्शाता है कि सृष्टि में ऊर्जा के अनेक आयाम हैं, परन्तु उनका आधार एक ही है – विष्णु।
(b) शक्ति और संतुलन का संकेत
नाग शक्ति और कुंडलिनी ऊर्जा के प्रतीक हैं। जब यह ऊर्जा जागृत होती है, तब जीवन का संतुलन बनता है। विष्णु का शेषनाग पर शयन करना इस ऊर्जा पर पूर्ण नियंत्रण का संकेत है।
(c) मृत्यु और अमरता का प्रतीक
नाग का संबंध विष से है, जो मृत्यु का द्योतक है। लेकिन शेषनाग विष्णु के अधीन हैं, यानी मृत्यु पर भी भगवान का नियंत्रण है।
5. आध्यात्मिक दृष्टि: योगनिद्रा और शांति
विष्णु शेषनाग पर योगनिद्रा में स्थित रहते हैं। इसका अर्थ है कि वे जाग्रत और निद्रा दोनों स्थितियों से परे हैं – पूर्ण ध्यान और शांति में।
- यह हमें सिखाता है कि सृष्टि का संरक्षण तभी संभव है जब मन शांत और संतुलित हो।
- शेषनाग की शैय्या यह भी बताती है कि अराजकता (समुद्र की लहरें) के बीच भी ईश्वर स्थिर रहते हैं।
6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण
(a) सर्प और ऊर्जा का विज्ञान
सर्प को हमेशा ऊर्जा और कंपनों (vibrations) का प्रतीक माना गया है। योग में कुंडलिनी शक्ति को सर्पाकार बताया गया है। जब यह ऊर्जा जागृत होती है, तो व्यक्ति दिव्यता को प्राप्त करता है। विष्णु का शेषनाग पर शयन इस ऊर्जा पर नियंत्रण का प्रतीक है।
(b) समुद्र और जीवन का चक्र
क्षीरसागर जीवन के जल को दर्शाता है। आधुनिक विज्ञान मानता है कि जीवन की उत्पत्ति जल से हुई। विष्णु का क्षीरसागर में होना बताता है कि जीवन का आधार जल है और ईश्वर उस पर नियंत्रण रखते हैं।
7. विष्णु-शेषनाग और ब्रह्मांड का संतुलन
- शेषनाग = आधार (ब्रह्मांड का मूल ऊर्जा तत्त्व)
- विष्णु = पालनकर्ता (संतुलन और जीवन का संचालन)
- क्षीरसागर = चेतना (सृष्टि की अनंत धारा)
यह त्रिकोण दिखाता है कि ब्रह्मांड में हर क्रिया ऊर्जा, चेतना और संतुलन के मेल से होती है।
8. शेषनाग और अवतारों का संबंध
शेषनाग ने हर युग में विष्णु का साथ निभाया:
- त्रेता युग: लक्ष्मण के रूप में राम के साथ
- द्वापर युग: बलराम के रूप में कृष्ण के साथ
- कलियुग: अनंत ऊर्जा के रूप में अदृश्य रूप में
9. भक्ति और जीवन संदेश
- संतुलन सीखें: समुद्र की लहरों में भी शांति बनाए रखें।
- ऊर्जा को साधें: कुंडलिनी शक्ति को नियंत्रित कर जीवन में उन्नति पाएं।
- सेवा भाव अपनाएं: शेषनाग की तरह निस्वार्थ सेवा करें।
- मृत्यु से न डरें: भगवान के अधीन मृत्यु भी अमरता में बदल जाती है।
10. निष्कर्ष
भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि ब्रह्मांड का एक दार्शनिक संदेश है। यह हमें सिखाता है कि जीवन का आधार ऊर्जा और संतुलन है। जब मन स्थिर और शांत होगा, तब ही हम वास्तविक ईश्वर का अनुभव कर पाएंगे।
शेषनाग हमें यह भी याद दिलाते हैं कि चाहे कितनी भी लहरें उठें, जो ईश्वर में लीन है, वह सदा अडिग रहता है।