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प्रस्तावना
भारतीय सनातन परंपरा में यदि किसी ऋषि को ज्ञान और ग्रंथकारिता का प्रतीक माना जाए तो वे हैं महर्षि वेदव्यास( ऋषि वेदव्यास )। इन्हें कृष्ण द्वैपायन व्यास, व्यासदेव और वेदव्यास नामों से भी जाना जाता है।
इन्हीं के सम्मान में आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।
जन्म कथा
ऋषि वेदव्यास का जन्म रहस्यमयी और अद्भुत घटनाओं से जुड़ा हुआ है।
- माता सत्यवती:
सत्यवती मछुआरे परिवार में पली-बढ़ीं। उनका नाम पहले मत्स्यगंधा था क्योंकि उनके शरीर से मछली की गंध आती थी। बाद में महर्षि पराशर ने उन्हें वरदान दिया कि उनके शरीर से दिव्य सुगंध निकलेगी और उनका नाम होगा सत्यवती। - महर्षि पराशर का वरदान:
पराशर ऋषि ने सत्यवती को आशीर्वाद दिया कि उनके गर्भ से एक दिव्य संतान जन्म लेगी, जिसकी कीर्ति युगों-युगों तक रहेगी। - जन्म स्थल और स्वरूप:
यमुना नदी के बीच एक द्वीप पर सत्यवती ने एक श्यामवर्ण बालक को जन्म दिया। इसी कारण उनका नाम पड़ा कृष्ण द्वैपायन (कृष्णवर्ण और द्वीप पर जन्मे)।
यह बालक जन्म लेते ही युवा हो गया और अपनी माता से विदा लेकर तपस्या के लिए वन चला गया।
योगदान और कृतियाँ
1. वेदों का विभाजन
पहले वेद एक ही विशाल ग्रंथ के रूप में थे, जिन्हें सामान्य मनुष्य समझ नहीं पाता था।
वेदव्यास जी ने इन्हें चार भागों में विभाजित किया:
- ऋग्वेद
- सामवेद
- यजुर्वेद
- अथर्ववेद
इसी कारण उन्हें “वेदव्यास” कहा गया।
2. महाभारत की रचना
महर्षि वेदव्यास ने ही महाभारत की रचना की, जिसे पंचम वेद भी कहा जाता है।
महाभारत में ही भगवद्गीता सम्मिलित है, जो जीवन का सर्वोच्च मार्गदर्शन प्रदान करती है।
3. पुराणों का संकलन
उन्होंने 18 पुराणों और अनेक उपपुराणों की रचना की। ये पुराण धर्म, नीति, इतिहास और आध्यात्मिक ज्ञान का भंडार हैं।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
हर साल आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।
इस दिन ऋषि वेदव्यास की पूजा की जाती है क्योंकि उन्होंने ज्ञान की गंगा बहाई और वेद-पुराणों को व्यवस्थित रूप दिया।
इन्हें आदि गुरु माना जाता है।
क्या वेदव्यास चिरंजीवी हैं?
चिरंजीवी का अर्थ
“चिरंजीवी” का अर्थ है – वह जो कलियुग के अंत तक जीवित रहे।
हिंदू मान्यताओं में अष्ट-चिरंजीवी बताए गए हैं, जिनमें ऋषि वेदव्यास भी शामिल हैं।
वेदव्यास जी की अमरता
पुराणों के अनुसार वेदव्यास जी भगवान विष्णु के अंशावतार हैं।
उन्हें वरदान मिला है कि वे कलियुग के अंत तक जीवित रहेंगे और धर्म की रक्षा करेंगे।
वर्तमान में वे कहाँ हैं?
कई कथाओं में यह वर्णन है कि वेदव्यास जी आज भी हिमालय की गुफाओं में तपस्या कर रहे हैं।
जब-जब धर्म की रक्षा का समय आता है, वे किसी न किसी रूप में प्रकट होकर मार्गदर्शन देते हैं।
भविष्य में भूमिका
भागवत और अन्य ग्रंथों में उल्लेख है कि जब भगवान कल्कि अवतार लेंगे, तब वेदव्यास जी भी उनके साथ रहकर धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे।
वेदव्यास जी का महत्व
- ज्ञान का स्रोत – उन्होंने वेद, पुराण, उपनिषद, महाभारत और गीता जैसी अमर धरोहर दी।
- गुरु परंपरा के प्रणेता – गुरु पूर्णिमा पर सबसे पहले उन्हीं की पूजा होती है।
- धर्म रक्षक – चिरंजीवी होने के कारण वे कलियुग तक धर्म की रक्षा करते रहेंगे।
- विश्व साहित्य के निर्माता – उनकी रचनाएँ विश्व के सबसे बड़े ग्रंथों में गिनी जाती हैं।
निष्कर्ष
ऋषि वेदव्यास केवल एक महर्षि ही नहीं, बल्कि धर्म, ज्ञान और साहित्य की जीवित धरोहर हैं।
उनका जन्म दिव्य चमत्कार से हुआ, उन्होंने वेद-पुराणों को व्यवस्थित किया, महाभारत जैसी महान रचना दी और आज भी चिरंजीवी होकर हिमालय में तपस्या कर रहे हैं।
यही कारण है कि उन्हें सनातन धर्म का शाश्वत मार्गदर्शक माना जाता है।