🌸 माँ कूष्मांडा: नवरात्रि की चौथी शक्ति – ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री


✨ परिचय

नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्मांडा को समर्पित है। देवी दुर्गा का यह रूप सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। “कूष्मांडा” शब्द का अर्थ है – कु (थोड़ा), उष्मा (ऊर्जा/प्रकाश) और अंड (ब्रह्मांड/अंडाकार संरचना)।
अर्थात् – थोड़ी सी मुस्कान से ही जिनसे पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई, वही हैं माँ कूष्मांडा

इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है क्योंकि इनके आठ हाथ हैं और इनमें जीवन की शक्ति एवं ब्रह्मांडीय ऊर्जा का वास है।


🌸 माँ कूष्मांडा का स्वरूप

माँ कूष्मांडा का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और दीप्तिमान है –

  • इनके आठ भुजाएँ हैं।
  • हाथों में कमंडलु, धनुष-बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला है।
  • आठवें हाथ में सिद्धियों और निधियों से भरा अमृत कलश है।
  • इनका वाहन सिंह है, जो वीरता और शक्ति का प्रतीक है।
  • इनके मुख पर मंद मुस्कान रहती है, जिससे समस्त संसार की रचना हुई।
  • इनके आभामंडल से अनगिनत सूर्यों का प्रकाश झलकता है।

🌸 माँ कूष्मांडा की कथा

शास्त्रों के अनुसार, जब ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब देवी ने अपनी दिव्य शक्ति और मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। इसीलिए उन्हें “आदि सृष्टि की जननी” भी कहा जाता है।

माना जाता है कि देवी के हृदय में सूर्य का वास है और उनकी दिव्य ऊर्जा से ही सूर्य तथा समस्त ग्रह-नक्षत्र शक्ति प्राप्त करते हैं। वे ही इस सृष्टि को धारण करने वाली और उसका संचालन करने वाली शक्ति हैं।

इस रूप में वे साधकों को सिद्धियाँ, निधियाँ और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती हैं।


🌸 माँ कूष्मांडा का महत्व

  1. ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री होने के कारण इन्हें आदि शक्ति माना जाता है।
  2. इनकी उपासना से साधक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है और रोग दूर होते हैं।
  3. भक्त के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, तेज और पराक्रम बढ़ता है।
  4. साधक को अष्टसिद्धि और नव निधियाँ प्राप्त होती हैं।
  5. साधना में उन्नति होती है और आयु में वृद्धि होती है।

🌸 माँ कूष्मांडा की पूजा विधि (नवरात्रि का चौथा दिन)

🪔 तैयारी

  • प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  • चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर माँ कूष्मांडा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

🪔 पूजन विधि

  1. कलश स्थापना करें और उसमें सुपारी, सिक्का, दूर्वा और जल रखें।
  2. दीपक जलाकर धूप-दीप से पूजन करें।
  3. माँ को चंदन, अक्षत, फूल और भोग अर्पित करें।
  4. माँ कूष्मांडा को मालपुए का भोग विशेष रूप से प्रिय है।
  5. “ॐ कूष्माण्डायै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
  6. अंत में माता की आरती करें।

🌸 माँ कूष्मांडा के मंत्र

बीज मंत्र

🔱 ॐ कूष्माण्डायै नमः

ध्यान मंत्र

“सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥”


🌸 माँ कूष्मांडा स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


🌸 माँ कूष्मांडा की आरती

जय अम्बे कूष्मांडा मैया, जय जगदम्बे कूष्मांडा।
सृष्टि की जननी कहलाती, मंगल दायिनी कूष्मांडा॥

अष्टभुजा के रूप में विराजे, हाथों में शक्ति अपार।
सिंह वाहन पर हो आरूढ़ा, करती सबका उद्धार॥


🌸 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व

  • माँ कूष्मांडा ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक हैं।
  • सूर्य की ऊर्जा का संबंध इनके हृदय से माना जाता है।
  • वैज्ञानिक दृष्टि से भी जीवन का आधार ऊर्जा और प्रकाश ही है।
  • घंटे, सूर्य और मुस्कान की प्रतीकात्मकता से यह संदेश मिलता है कि सकारात्मक सोच और ऊर्जा से ही सृष्टि और जीवन संभव है।

🌸 माँ कूष्मांडा की उपासना का फल

  1. स्वास्थ्य उत्तम रहता है और रोगों का नाश होता है।
  2. जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  3. भक्त को धन, ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति होती है।
  4. परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
  5. साधक को आध्यात्मिक उन्नति और सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

✅ निष्कर्ष

माँ कूष्मांडा ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री हैं। इनकी उपासना से जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य, समृद्धि और सकारात्मकता आती है। नवरात्रि के चौथे दिन इनकी पूजा करने से भक्त के जीवन में सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और साधक का मार्ग आलोकित होता है।


Leave a Comment