तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है?

🟢 परिचय: तुलसी विवाह क्या है?

तुलसी विवाह एक अत्यंत पवित्र सनातन परंपरा है, जिसमें भगवान शालिग्राम (विष्णु स्वरूप) और तुलसी माता (वृंदा अवतार) का विवाह किया जाता है। यह विवाह देवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी) को होता है। इस दिन से देवताओं का चार महीने का शयन समाप्त होता है और सभी शुभ कार्य, विवाह एवं उत्सव फिर से शुरू होते हैं।

तुलसी विवाह को प्रतीकात्मक रूप से धर्म और प्रकृति के मिलन के रूप में माना जाता है।


🔱 तुलसी विवाह की पौराणिक कथा (पूर्ण विस्तृत)

प्राचीन समय में एक परम पतिव्रता स्त्री थीं — वृंदा। उनका विवाह एक बलशाली लेकिन अहंकारी असुर शंखचूड़ से हुआ था।

🌿 वृंदा (तुलसी) का सतीत्व

वृंदा इतनी पवित्र थीं कि उनके सतीत्व की शक्ति से शंखचूड़ अजेय हो गया। कोई देवता उसे पराजित नहीं कर पाए। देवता दुखी थे, क्योंकि शंखचूड़ अत्याचार कर रहा था।

सभी देवता मिलकर भगवान शिव और भगवान विष्णु के पास समाधान लेने पहुँचे।

भगवान विष्णु ने कहा:

“शंखचूड़ की शक्ति तब तक बनी रहेगी जब तक वृंदा का सतीत्व अटल है।”

युद्ध शुरू हुआ — पर विजय असंभव दिख रही थी।

⚡ निर्णायक घटना

भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और वृंदा के सामने आए। वृंदा ने अपने पति समझकर उनका स्वागत किया। जैसे ही उनका सतीत्व भंग हुआ— उसी क्षण शंखचूड़ की शक्ति क्षीण हो गई।

भगवान शिव ने तुरंत युद्ध में शंखचूड़ को वध किया।

🌋 वृंदा का श्राप

वृंदा को जब सत्य पता चला, उन्होंने विष्णु को श्राप दे दिया:

“तुम पत्थर बन जाओगे — निर्जीव, ठंडे और कठोर!”

श्राप प्रभावी हुआ, और विष्णु शालिग्राम शिला रूप में प्रकट हुए।

विष्णु ने शांत भाव से कहा:

“तुम पवित्र हो, वृंदा। तुम्हारा नाम तुलसी रहेगा।
तुम धरती पर रहोगी और मेरी पूजा हमेशा तुम्हारे बिना पूर्ण नहीं मानी जाएगी।
और — मैं हर वर्ष तुम्हारे साथ विवाह करूंगा।”

इस प्रकार, वृंदा (तुलसी) को दिव्यता प्राप्त हुई।


🟢 तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है?

✔ यह प्रेम, समर्पण और पवित्रता का उत्सव है।
✔ तुलसी और शालिग्राम का मिलन पुरुष (विष्णु) और प्रकृति (तुलसी) के मिलन का प्रतीक है।
✔ दिवाली के बाद यह पहला बड़ा उत्सव होता है।


🌿 तुलसी विवाह किस दिन होता है?

  • तिथि: कार्तिक शुक्ल एकादशी
  • नाम: देवउठनी एकादशी / प्रबोधिनी एकादशी

👉 इस दिन देवताओं का विश्राम समाप्त होता है और सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।


🪷 तुलसी विवाह की पूजा-विधि (Step-by-Step)

🔸 सामग्री (Samagri)

  • तुलसी का पौधा
  • शालिग्राम (काले रंग की शिला / पत्थर रूपी विष्णु)
  • रोली, हल्दी, अक्षत
  • फल, मिठाई, पंचामृत
  • चुनरी, मेहंदी, साड़ी या कपड़े
  • दीपक, फूल, माला
  • एक छोटी माला (वरमाला)

✅ विधि:

  1. तुलसी के पौधे को स्नान कराएं (शुद्ध जल / गंगाजल से)।
  2. तुलसी को मेंहदी, बिंदी, साड़ी या चुनरी पहनाएँ।
  3. शालिग्राम (विष्णु) को साफ कर पीले वस्त्र पहनाएँ।
  4. तुलसी और विष्णु को आमने-सामने बिठाएँ।
  5. मंगलाष्टक / विवाह मंत्र / आरती करें।
  6. तुलसी और शालिग्राम की वरमाला कराएँ।
  7. अंत में प्रसाद और पंचामृत बाँटें।

🌿 तुलसी विवाह के नियम

क्या करना चाहिए ✅क्या नहीं करना चाहिए ❌
तुलसी को जल अर्पित करेंतुलसी को छूते समय जूते न पहनें
दीपक जलाएँरविवार / संक्रांति पर तुलसी न तोड़ें
तुलसी को लाल चुनरी पहनाएँरात में तुलसी को जल न दें

🧠 वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक महत्व

आध्यात्मिकवैज्ञानिक
तुलसी सकारात्मक ऊर्जा आकर्षित करती हैतुलसी का ऑक्सीजन प्रोडक्शन 20 घंटे तक रहता है
घर में देवी का निवास माना गया हैतुलसी एंटी-वायरल, एंटी-बैक्टीरियल है
विवाह से जीवन में सुख-शांति आती हैतुलसी हवा में मौजूद विषाक्तता को कम करती है

✨ तुलसी विवाह के लाभ (Benefits)

✔ विवाह योग्य लोगों को उचित जीवनसाथी मिलता है
✔ दांपत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य आता है
✔ घर में धन और शुभता बढ़ती है
✔ पितृ दोष और वैवाहिक बाधाएँ समाप्त होती हैं


🙏 मंत्र (Tulsi Vivah Mantra)

“त्वमेव माताश्च पिताश्च देवि तुलसी त्वमेव।
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।”


❓ FAQs — अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1. क्या बिना शालिग्राम के तुलसी विवाह कर सकते हैं?
➡ हाँ, विष्णु जी की फोटो रखकर भी विवाह हो सकता है।

Q2. तुलसी की पत्ती कब नहीं तोड़नी चाहिए?
➡ रविवार, संध्या, अमावस्या, एकादशी को नहीं तोड़नी चाहिए।

Q3. विवाहित महिलाएँ तुलसी विवाह क्यों करती हैं?
➡ दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ाने के लिए।


🌿 निष्कर्ष

तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं —
यह प्रेम, समर्पण और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है।

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