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परिचय
अभ्यंग स्नान, जिसे आयुर्वेद में “आयुर्वेदिक तेल स्नान” कहा जाता है, प्राचीन भारतीय परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है। यह केवल शरीर को साफ करने का तरीका नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, सौंदर्य और आध्यात्मिक शुद्धि का भी एक मार्ग है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसे स्वास्थ्य की कुंजी और रोग निवारण की प्राकृतिक विधि माना गया है। विशेष रूप से नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के दिन यह स्नान अत्यंत शुभ माना जाता है।
अभ्यंग का अर्थ है:
- अभि = सम्पूर्ण / ऊपर से
- अंग = शरीर
इस प्रकार, अभ्यंगस्नान का मतलब होता है पूरे शरीर पर तेल से मालिश कर स्नान करना, जिससे शरीर के तंत्रिकाओं, जोड़ों और त्वचा में ऊर्जा का संचार होता है।
इतिहास और पौराणिक महत्व
अभ्यंगस्नान की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है कि ऋषि-मुनि और देवताओं ने इसे स्वास्थ्य और पुण्य के लिए अपनाया।
कथा है कि नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अंबर और यमुना के किनारे अपने वध के पश्चात् अभ्यंग स्नान किया था। तब से यह परंपरा दिवाली और छोटी दिवाली के अवसर पर प्रचलित हुई।
दूसरी कथा महाभारत और विभिन्न पुराणों में मिलती है, जिसमें राजाओं और राजकुमारियों को तनाव और शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए अभ्यंग स्नान करने की सलाह दी गई थी।
अभ्यंग स्नान सिर्फ व्यक्तिगत स्वच्छता का साधन नहीं था, बल्कि इसे शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करने वाला यज्ञ भी माना जाता था।
आयुर्वेद में अभ्यंगस्नान का महत्व
आयुर्वेद में शरीर को तीन दोषों – वात, पित्त और कफ – के संतुलन के आधार पर स्वास्थ्य बनाए रखने की बात कही गई है। अभ्यंग स्नान इन तीनों दोषों को संतुलित करने में सहायक होता है।
- वात दोष: ठंडा तेल और हल्की मालिश वात दोष को नियंत्रित करती है।
- पित्त दोष: तिल और नारियल तेल शरीर की गर्मी को संतुलित करता है।
- कफ दोष: मसाज से शरीर के अतिरिक्त जमाव और सर्दी का नाश होता है।
अभ्यंग स्नान केवल शारीरिक लाभ ही नहीं देता, बल्कि मानसिक और मानसिक संतुलन भी प्रदान करता है।
अभ्यंग स्नान के लाभ
1. शारीरिक लाभ
- त्वचा की चमक और नमी बढ़ाता है।
- मांसपेशियों और जोड़ों को मजबूती देता है।
- रक्त संचार में सुधार करता है।
- शरीर से टॉक्सिन और अवांछित तत्व बाहर निकालता है।
2. मानसिक लाभ
- तनाव और चिंता कम करता है।
- नींद की गुणवत्ता बढ़ाता है।
- मानसिक ऊर्जा और ताजगी प्रदान करता है।
3. आध्यात्मिक लाभ
- पाप और नकारात्मक ऊर्जा का नाश करता है।
- आत्मा को शुद्ध और पवित्र बनाता है।
- धार्मिक अवसरों पर इसे करने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
अभ्यंग स्नान की विधि (Step by Step)
सामग्री
- तिल का तेल / नारियल तेल / आयुर्वेदिक हर्बल तेल
- हल्का गुनगुना पानी
- उबटन (चावल का आटा, बेसन, हल्दी, दही)
- स्नानघर और तौलिया
विधि
- तेल को हल्का गुनगुना कर लें।
- सिर से पैर तक पूरे शरीर पर मालिश करें।
- कम से कम 15-20 मिनट तक तेल को शरीर में सोखने दें।
- उबटन या हल्के साबुन से स्नान करें।
- स्नान के बाद आरामदायक कपड़े पहनें और दीपक या धूप में थोड़ा समय बिताएँ।
विशेष अवसर: नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली
छोटी दिवाली पर अभ्यंग स्नान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यह नरकासुर के वध और भगवान कृष्ण की कथा से जुड़ा है।
- इस दिन तेल से स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों पवित्र होते हैं।
- घर में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है।
- पारंपरिक रूप से लोग तिल का तेल और हल्दी का उपयोग करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आयुर्वेदिक शोधों के अनुसार:
- तेल की मालिश से त्वचा की नमी बढ़ती है और कोशिकाओं की मरम्मत होती है।
- रक्त संचार में वृद्धि से शरीर के अंगों में ऑक्सीजन का प्रवाह बेहतर होता है।
- तनाव कम करने वाला हार्मोन (Serotonin) बढ़ता है।
- स्नान के दौरान हल्की गर्मी और तेल की मालिश से मांसपेशियों में जकड़न कम होती है।
अभ्यंगस्नान और सौंदर्य
- नियमित अभ्यंग स्नान से चेहरे और शरीर की त्वचा में निखार आता है।
- बालों की जड़ें मजबूत होती हैं और बाल झड़ने कम होते हैं।
- शरीर की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी होती है।
घर पर आसान उपाय
- सुबह सूर्योदय से पहले करना अधिक लाभकारी है।
- तेल को हल्का गर्म करके ही शरीर पर लगाएँ।
- तेल की मालिश के बाद 5-10 मिनट हल्की स्ट्रेचिंग करें।
- स्नान के बाद नारियल पानी या हल्का पानी पिएँ।
सावधानियाँ
- तेल गर्म करते समय बहुत अधिक गर्म न करें।
- गर्भवती महिलाएँ और उच्च रक्तचाप वाले लोग डॉक्टर की सलाह से ही करें।
- तिल तेल एलर्जी वालों को नारियल या बादाम तेल का प्रयोग करना चाहिए।
धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि
- अभ्यंग स्नान को “आध्यात्मिक स्नान” भी कहा जाता है।
- यह देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और घर में सुख-शांति लाने का उपाय है।
- धार्मिक ग्रंथों में इसे शरीर और आत्मा की पवित्रि का प्रतीक माना गया है।
समापन
अभ्यंग स्नान केवल एक स्नान प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह जीवन जीने का एक आयुर्वेदिक, आध्यात्मिक और सौंदर्यपूर्ण तरीका है।
यह न केवल शरीर को स्वस्थ और चमकदार बनाता है, बल्कि मन को शांत और आत्मा को शुद्ध भी करता है।
पुनः संक्षेप में लाभ
- शरीर की नमी और चमक बढ़ाता है
- जोड़ों और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है
- तनाव और चिंता को कम करता है
- नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है
- पाप और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है
- आयुर्वेदिक दृष्टि से दोष संतुलन करता है