अहोई अष्टमी संतान सुख और समृद्धि का पावन व्रत



✨ प्रस्तावना

हिन्दू संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष स्थान है। हर व्रत किसी न किसी भाव से जुड़ा होता है—कहीं पति की लंबी आयु के लिए तो कहीं संतान की समृद्धि के लिए। इन्हीं महान और भावपूर्ण व्रतों में एक है — अहोई अष्टमी। यह व्रत मुख्य रूप से संतानवती माताओं द्वारा अपने पुत्र-पुत्रियों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और उन्नति के लिए रखा जाता है।

करवा चौथ के चार दिन बाद आने वाला यह व्रत, सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि ममता और त्याग का प्रतीक है। इस दिन माताएँ सूर्योदय से तारे निकलने तक उपवास रखती हैं और अहोई माता की पूजा करके अपने बच्चों के सुखमय जीवन की कामना करती हैं।


📜 अहोई अष्टमी का इतिहास और उत्पत्ति

अहोई अष्टमी की शुरुआत कब हुई, इसका कोई प्राचीन लिपिबद्ध प्रमाण उपलब्ध नहीं है। लेकिन लौकिक कथाओं और पुराणों से इतना अवश्य ज्ञात होता है कि यह व्रत सदियों से उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय रहा है।

कहा जाता है कि प्राचीन काल में स्त्रियाँ धनतैरस से पहले संतान रक्षण के लिए देवी पार्वती की आराधना करती थीं। धीरे-धीरे यह पूजा अष्टमी तिथि पर स्थिर हो गई और इसका रूप अहोई माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

“अहोई” शब्द का अर्थ है — “अहो!” अर्थात् आश्चर्य या दुःख का भाव। माना जाता है कि यह व्रत गलती से हुए किसी पाप या अनजाने अपराध के प्रायश्चित के रूप में भी प्रारंभ हुआ।


🙏 अहोई माता कौन हैं?

अहोई माता को भगवती पार्वती का ही रूप माना जाता है।

  • वे संतान रक्षा की देवी हैं।
  • उनके साथ अक्सर सात या आठ पुत्रों और साही (सुईनुमा जानवर / खरहा / साही) का चित्र बनाया जाता है।
  • ऐसा इसलिए क्योंकि मुख्य कथा साही के बच्चों से जुड़ी हुई है।

कुछ परंपराओं में अहोई माता को “अष्टमी देवी”, “संतान रक्षा माता” या “अहोई भवानी” भी कहा जाता है।


📖 अहोई अष्टमी की मुख्य कथा

सबसे प्रचलित कथा इस प्रकार है—

एक बार एक साहूकार की पत्नी दीपावली से पहले जंगल में मिट्टी खोदने गई ताकि घर की दीवार लीप सके। खोदते-खोदते उससे अनजाने में एक साही (सुईनुमा जीव / ख़रहा) के बच्चे पर चोट लग गई और वह मर गया।

साही की माँ ने क्रोध में कहा—

“तूने मेरे बच्चे को मारा है, तेरे भी बच्चे दुख पाएँगे!”

समय बीतता गया और उस महिला के सभी सात बच्चे एक-एक करके मर गए या किसी न किसी कारण से असमय चले गए। दुखी होकर उसने एक दिन जंगल जाकर साही माता से क्षमा माँगी

साही माता ने कहा —

“तू मेरे लिए अष्टमी के दिन व्रत रख और सात गरीब माताओं को जल पिलाकर दान दे। फिर मैं तुझे क्षमा करूँगी।”

उसने वैसा ही किया और उसी के बाद उसे पुनः संतान सुख प्राप्त हुआ और उसके बच्चे दीर्घायु हुए।

तभी से यह व्रत रखा जाने लगा।


📌 दूसरी कथा — माया और गायब संतान

एक अन्य कहानी के अनुसार—

एक गाँव में माया नामक महिला के सात बेटे थे। एक दिन उसे भूख लगी तो उसने चांदी का सिक्का गिरवी रखकर खाद्य सामग्री ले ली।

इसी बीच उसके बेटे एक-एक करके अचानक गायब होने लगे। समझ नहीं आया कि क्या हुआ।

किसी ज्ञानी संत ने बताया —

“तूने अनजाने में किसी का हक मार लिया है। अष्टमी के दिन व्रत रख और गरीब बच्चों को दान दे।”

उसने ऐसा किया और उसके बच्चे वापस मिल गए


🪔 अहोई अष्टमी व्रत विधि (पूरी प्रक्रिया)

🌅 व्रत की शुरुआत

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
  • संकल्प लें“मैं अपने पुत्र/पुत्री के सुख-समृद्धि के लिए अहोई अष्टमी व्रत रखती हूँ।”

✍️ अहोई माता का चित्र बनाना

  • दीवार पर कच्ची मिट्टी, गेरू, या रंगोली से अहोई माता का चित्र बनाएं।
  • साथ में सात बच्चे और एक साही (खरहा / सुई जैसा जीव) का भी चित्र बनाएं।

(आज के समय में रेडीमेड अहोई पोस्टर का उपयोग भी किया जाता है।)

🌾 पूजा सामग्री

  • जल का लोटा
  • रोली, चावल, हल्दी
  • दूध या पानी से भरा करवा
  • लौकी या कद्दू पर छेद करके रखे धागा (कुछ क्षेत्रों में चलता है)
  • स्वास्तिक चिन्ह
  • सुई या कंघी (प्रतीक के रूप में)

🌙 उपवास टूटता कब है?

  • रात को तारे या सप्तऋषि को देखकर पानी से अर्घ्य दें
  • उसके बाद व्रत खोला जाता है

💡 वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विश्लेषण

  • यह व्रत संतान के प्रति मातृत्व भाव और सकारात्मक ऊर्जा का प्रक्षेपण है।
  • व्रत रखने से शरीर में डिटॉक्स होता है।
  • तारे देखने की परंपरा खगोल विज्ञान से जुड़ी है।
  • साही या खरहा एक भूमि रक्षक जीव है — यह फसलों में हानिकारक कीड़ों को खाता है। इसलिए उसे मारना किसान संस्कृति में पाप माना जाता था।

🌍 भारत के विभिन्न राज्यों में इसका पालन

क्षेत्रइस व्रत का स्थानीय नामविशेषता
उत्तर प्रदेशअहोई माता व्रतदीवार पर गेरू से चित्र बनता है
राजस्थानअष्ठक मातासात धागे बाँधे जाते हैं
पंजाबअठम व्रतगेहूं के दाने रखकर पूजा
गुजरातवरुतरी अष्टमीकुछ जगह पुत्रवती स्त्रियाँ गरबा करती हैं
बिहारसंतान रक्षा व्रतसात कच्चे धागे पर गाँठ

🤝 अहोई अष्टमी और करवा चौथ का संबंध

  • करवा चौथ = पति की लंबी आयु के लिए
  • अहोई अष्टमी = संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए

दोनों व्रत पति-पत्नी से जुड़ी पारिवारिक स्थिरता के प्रतीक हैं।


❓FAQs — लोग अक्सर क्या पूछते हैं?

Q1. क्या अहोई अष्टमी सिर्फ बेटों के लिए होती है?
👉 नहीं, अब इसे बेटियों के लिए भी समान रूप से रखा जाता है।

Q2. क्या गर्भवती स्त्री यह व्रत रख सकती है?
👉 हाँ, लेकिन निराहार नहीं — फलाहार रख सकती है।

Q3. क्या विधवा महिला यह व्रत रख सकती है?
👉 सामान्यतः नहीं, क्योंकि यह सौभाग्य व्रत माना जाता है।

Q4. पूजा न कर पाऊँ तो क्या?
👉 साधारण संकल्प लेकर तारा देखकर जल अर्पित करें, व्रत माना जाएगा।


✅ निष्कर्ष

अहोई अष्टमी केवल एक धार्मिक व्रत नहीं बल्कि मातृत्व का भावनात्मक पर्व है। यह बताता है कि माँ अपने बच्चों के लिए किसी भी त्याग के लिए तत्पर रहती है। यह व्रत गलती से हुए कर्मों का प्रायश्चित, सकारात्मक ऊर्जा का संचार, और परिवार में एकता का प्रतीक है।

यदि आज भी लाखों माताएँ यह व्रत रखती हैं तो इसका कारण सिर्फ परंपरा नहीं — विश्वास है कि माँ की भावना में असीम शक्ति होती है।

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