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🌿 परिचय
दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला बालिप्रतिपदा (Bali Pratipada) या गोवर्धन पूजा एक अत्यंत पवित्र दिन है।
यह दिन राजा बलि की स्मृति में और भगवान वामन (विष्णु अवतार) के उपहारस्वरूप मनाया जाता है।
कहीं-कहीं इसे अन्नकूट या विक्रम संवत का प्रथम दिन भी कहा जाता है।
👑 बालिप्रतिपदा का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार —
राजा महाबलि, जो असुर होते हुए भी अत्यंत धर्मात्मा थे, ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उनसे तीन पग भूमि माँगी।
राजा बलि ने सहर्ष वचन दिया, और जब वामन ने अपने विराट रूप में तीन पगों से सारा ब्रह्मांड नाप लिया,
तो तीसरा पग राजा बलि ने अपने सिर पर रखवाया।
भगवान विष्णु उनके सत्य और दानशीलता से प्रसन्न होकर बोले —
“हे बलि, तुम वर्ष में एक बार पृथ्वी पर आने का वरदान पाओगे, और उस दिन लोग तुम्हारा स्वागत करेंगे।”
यह वही दिन है — बालिप्रतिपदा।
🪔 इस दिन का धार्मिक महत्व
- यह दिन अहंकार के दमन और भक्ति की विजय का प्रतीक है।
- यह दान, विनम्रता और सत्यता की सीख देता है।
- कई स्थानों पर यह गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व के रूप में मनाया जाता है।
- यह दिन नए विक्रम संवत (हिंदू नववर्ष) का प्रारंभ भी माना जाता है।
🍚 बालिप्रतिपदा पूजा विधि (Pooja Vidhi)
- प्रातः स्नान व पूजा स्थल की शुद्धि करें।
- भगवान वामन, विष्णु और राजा बलि की पूजा करें।
- घर में गोवर्धन पर्वत का प्रतीक (गोबर या मिट्टी से) बनाकर उसे फूल, अक्षत और दीप से सजाएँ।
- अन्नकूट तैयार करें — विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित करें।
- आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।
- इस दिन दान करना अत्यंत शुभ माना गया है।
🌾 अन्नकूट पर्व
अन्नकूट का अर्थ है — “अन्न का पर्वत।”
इस दिन सैकड़ों प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धन पर्वत के प्रतीक के सामने रखे जाते हैं।
यह भगवान कृष्ण के उस चमत्कार की याद दिलाता है जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र के कोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
🌺 बालिप्रतिपदा का सांस्कृतिक पक्ष
- महाराष्ट्र में इस दिन पति-पत्नी के संबंधों को सम्मान देने की परंपरा है।
- पत्नी अपने पति का आरती उतारकर तिलक करती है और उसकी दीर्घायु की कामना करती है।
- इसे “पत्नी-दिन” भी कहा जाता है — जैसे पिछले दिन “भाई दूज” का भाई-बहन के लिए महत्व है।
🪙 वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- यह दिन दीपोत्सव श्रृंखला का अंतिम भाग है, जिसमें वातावरण की सफ़ाई और प्रकाश ऊर्जा का विस्तार होता है।
- अन्नकूट पर्व भोजन में विविधता लाने और आयुर्वेदिक संतुलन बनाए रखने की परंपरा है।
💫 निष्कर्ष
बालिप्रतिपदा हमें सिखाती है कि विनम्रता और भक्ति ही सच्चे बल हैं।
राजा बलि की तरह जो व्यक्ति सत्य, दान और धर्म में अडिग रहता है,
वह सदैव ईश्वर की कृपा प्राप्त करता है।
यह पर्व केवल दीपों का नहीं — बल्कि समर्पण और भक्ति के प्रकाश का भी प्रतीक है।