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भारत की सांस्कृतिक धरोहर केवल मंदिरों, त्योहारों और लोकनृत्यों तक सीमित नहीं, बल्कि लोकगीतों में भी छिपी हुई है। इन्हीं लोकगीतों में से एक है “भुलाबाई”, जो विशेष रूप से महाराष्ट्र के विदर्भ, खानदेश और मराठवाड़ा क्षेत्र में दिवाली के समय गाया जाता है। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि सामुदायिक एकता, आशीर्वाद और पारंपरिक उत्सव का प्रतीक है।
भुलाबाई क्या है?
भुलाबाई एक पारंपरिक लोकगीत (Folk Song Tradition) है, जिसे मुख्य रूप से दिवाली के दौरान महिलाएँ और बच्चे घर-घर जाकर गाते हैं। इन गीतों के माध्यम से वे घर के मालिकों को शुभकामनाएँ देते हैं और बदले में उपहार या मिठाई प्राप्त करते हैं।
कई स्थानों पर इसे “भुलई” या “भुलाबाईची गाणी” भी कहा जाता है।
भुलाबाई कब और कहाँ गाई जाती है?
| समय | स्थान |
|---|---|
| अश्विन अमावस्या (दिवाली) से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक | महाराष्ट्र के गाँवों में, विशेषकर विदर्भ और खानदेश क्षेत्र में |
कई गाँवों में यह परंपरा दशहरे के तुरंत बाद शुरू होती है और दिवाली तक चलती है।
भुलाबाई गीतों की विशेषताएँ
- ये गीत सरल मराठी भाषा में होते हैं।
- हर गीत भगवान, प्रकृति, फसल, गाय-भैंस, माता-पिता और घर के सदस्यों का आशीर्वाद स्वरूप वर्णन करता है।
- गीतों में अक्सर घर के मालिक का नाम लेकर उनके लिए प्रार्थना की जाती है।
भुलाबाई लोकगीत का उदाहरण
“भुलाबाई, भुलाबाई, लिंबाचा पान,
दे वरुण आशीर्वाद, सुखाचा मान…”
हिंदी अर्थ:
“हे भुलाबाई, नींबू के पत्तों सी सुगंध लाओ,
ऊपरवाले का आशीर्वाद दो और सुख-समृद्धि प्रदान करो।”
भुलाबाई परंपरा का स्वरूप
- गाँव की महिलाएँ या बच्चे समूह बनाकर निकलते हैं।
- वे ढोलकी या थाली बजाते हुए गीत गाते हैं।
- हर घर के दरवाज़े पर रुककर भुलाबाई गीत गाया जाता है।
- घर के मालिक द्वारा अनाज, मिठाई, पैसे या उपहार दिए जाते हैं।
- अंत में सभी मिलकर सामूहिक भोजन या उत्सव मनाते हैं।
भुलाबाई का इतिहास और सांस्कृतिक महत्व
इतिहासकारों के अनुसार, यह परंपरा कृषि आधारित समाज से जुड़ी है। फसल कटाई के बाद गाँव के लोग “आभार और मंगलकामना” हेतु यह गीत गाते थे। यह एक प्रकार का लोक आशीर्वाद और सामाजिक संवाद था।
भुलाबाई केवल गीत नहीं — बल्कि “सामूहिक एकता और कृतज्ञता का पर्व” है।
दिवाली से इसका संबंध क्यों?
दिवाली को समृद्धि और नए वर्ष की शुरुआत माना जाता है। ऐसे समय में भुलाबाई गीत गाकर लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं, ताकि नए वर्ष में घर में सुख-शांति बनी रहे।
आज के समय में भुलाबाई की स्थिति
- शहरों में यह परंपरा लगभग लुप्त हो चुकी है।
- लेकिन गाँवों और कुछ सांस्कृतिक समूहों ने इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।
- कई स्कूलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भुलाबाई प्रतियोगिताएँ भी आयोजित होती हैं।
FAQ – भुलाबाई से जुड़े सामान्य प्रश्न
1. भुलाबाई कौन गाता है?
➡ मुख्य रूप से महिलाएँ और बच्चे।
2. क्या भुलाबाई केवल हिंदू परंपरा है?
➡ यह लोक परंपरा है, धर्म के बजाय सांस्कृतिक रूप में अधिक प्रसिद्ध है।
3. भुलाबाई का कोई विशेष देवता से संबंध है?
➡ नहीं, यह गीत आशीर्वाद और मंगलकामना का प्रतीक है, किसी एक देवी-देवता तक सीमित नहीं।
4. क्या आज भी यह गाया जाता है?
➡ हाँ, गाँवों में आज भी घर-घर जाकर गाया जाता है।
निष्कर्ष
भुलाबाई केवल एक लोकगीत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की वह ध्वनि है जो हमें सामूहिकता, आशीर्वाद और सादगी के महत्त्व की याद दिलाती है।
आज जब हम आधुनिक संगीत और त्योहारों के कृत्रिम स्वरूप में खोते जा रहे हैं, तब भुलाबाई जैसी परंपराएँ हमें अपनी जड़ों से जोड़ती हैं।