चातुर्मास में सृष्टि कौन संभालता है? योगनिद्रा के पीछे का आध्यात्मिक रहस्य

🔱 भूमिका:

सनातन धर्म में हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराएं मात्र रीति-रिवाज नहीं, बल्कि गूढ़ अर्थ और गहरी आध्यात्मिकता से युक्त होती हैं। ऐसी ही एक परंपरा है — “भगवान विष्णु का चार महीने के लिए सो जाना” जिसे चातुर्मास कहा जाता है। हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान विवाह, शुभ कार्य और सामाजिक उत्सव वर्जित होते हैं। परंतु सवाल यह है कि —

क्या सच में भगवान सो जाते हैं?
इसका क्या तात्पर्य है?
और जब ईश्वर विश्राम करते हैं तो फिर सृष्टि का संचालन कौन करता है?

इस लेख में हम इन सभी प्रश्नों का उत्तर आध्यात्मिक, पौराणिक, प्रतीकात्मक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विस्तार में जानेंगे।


🔹 चातुर्मास क्या है?

“चातुर्मास” एक संस्कृत शब्द है, जिसमें “चातुर” का अर्थ है ‘चार’ और “मास” का अर्थ है ‘महीने’। यह वह अवधि है जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह चार महीने होते हैं:

  1. आषाढ़
  2. श्रावण
  3. भाद्रपद
  4. आश्विन

यह काल धार्मिक अनुशासन, आत्मसुधार और साधना के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है। साधु-संत इस दौरान यात्रा नहीं करते और एक ही स्थान पर ठहरकर साधना करते हैं।


🔹 भगवान चार महीने के लिए क्यों “सोते” हैं? (आध्यात्मिक दृष्टिकोण)

भगवान का सो जाना कोई भौतिक नींद नहीं है। यह एक योगनिद्रा है — यानी चेतन अवस्था में भी अचेतन प्रतीत होने वाली स्थिति। इसका गूढ़ अर्थ है:

1. सृष्टि चक्र में विश्राम की आवश्यकता:

प्रकृति, ब्रह्मांड और जीव सभी को विश्राम की आवश्यकता होती है। वर्षा ऋतु और उसके बाद का समय प्रकृति के पुनर्निर्माण और आत्म-संयम का समय होता है। ईश्वर इस समय स्वयं को निष्क्रिय करके मनुष्य को धर्म, संयम और सेवा का अभ्यास करने का अवसर देते हैं।

2. मानव समाज की परीक्षा:

भगवान विष्णु के योगनिद्रा में होने का मतलब है — मनुष्य को स्वधर्म का पालन बिना प्रत्यक्ष ईश्वरीय हस्तक्षेप के करना चाहिए। यही सच्चा अध्यात्म है — जब ईश्वर मौन हो, तब भी आप धर्म पर डटे रहें।

3. ध्यान और साधना का काल:

चातुर्मास आत्मचिंतन, व्रत, जप, ध्यान और संयम का काल है। यह चार महीने संयमित जीवनशैली अपनाने के लिए श्रेष्ठ माने गए हैं।


🔹 क्या सच में भगवान सो जाते हैं? (पौराणिक कथाएं)

विष्णु पुराण और स्कंद पुराण में वर्णन है कि भगवान विष्णु हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी को योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इस दौरान सृष्टि का कार्यभार देवी शक्ति, ब्रह्मा, शिव, इंद्र आदि देवताओं पर रहता है।

✍️ कथा:

एक बार देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा कि आप वर्ष भर विश्राम नहीं करते, अतः कुछ समय विश्राम करें। तब भगवान विष्णु ने कहा कि वे चार महीने योगनिद्रा में रहेंगे। इस दौरान विवाह और मंगल कार्य वर्जित रहेंगे।


🔹 चातुर्मास में सृष्टि कौन संभालता है?

यह प्रश्न अत्यंत रोचक और गूढ़ है। जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं, तो:

1. देवी शक्ति (प्रकृति / माया):

प्रकृति ही सृष्टि की गति है। भगवान की योगनिद्रा कोई निष्क्रियता नहीं है — वह एक सूक्ष्म संचालन की अवस्था है। इस दौरान देवी शक्ति (दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती का संयुक्त रूप) ब्रह्मांड को संचालित करती है। प्रकृति ही सृजन, पालन और संहार तीनों को गतिशील रखती है।

2. भगवान शिव और ब्रह्मा:

  • ब्रह्मा जी सृष्टि के निर्माता हैं।
  • शिव जी संहार और संतुलन के प्रतीक हैं।
    जब विष्णु विश्राम में होते हैं, तो ये दोनों जगत के तीनों गुण (सत्त्व, रज, तम) के संतुलन से कार्य करते हैं।

3. ईश्वर की सूक्ष्म उपस्थिति:

ईश्वर कभी सोते नहीं — वे सिर्फ प्रकट रूप से विश्राम करते हैं, पर उनकी चेतना हर पल सक्रिय रहती है। विष्णु की योगनिद्रा एक प्रतीक है कि जब ईश्वर प्रत्यक्ष नहीं, तब भी सृष्टि उनके आदेशानुसार संचालित होती है।


🔹 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चातुर्मास

  1. वर्षा ऋतु में बीमारियाँ अधिक होती हैं: इसलिए आयुर्वेद और धर्म दोनों कहते हैं कि इस समय संयमित भोजन और शुद्ध जीवनशैली अपनानी चाहिए।
  2. प्राकृतिक गतिविधियाँ मंद होती हैं: कृषि चक्र में इस काल को विश्राम और तैयारी का समय माना जाता है।
  3. शारीरिक और मानसिक पुनर्नवीकरण: उपवास, व्रत और ध्यान से शरीर और मन को शुद्ध करने का अवसर मिलता है।

🔹 चातुर्मास में क्या करें और क्या न करें?

✔️ करना चाहिए:

  • व्रत, उपवास और साधना
  • श्रीमद्भागवत, गीता, रामायण का पाठ
  • दान-पुण्य, ब्रह्मचर्य का पालन
  • सात्विक भोजन और स्वच्छता

❌ नहीं करना चाहिए:

  • विवाह या मांगलिक कार्य
  • यात्रा, विशेषतः साधु-संतों के लिए
  • अधिक भोग-विलास
  • मांसाहार, मद्यपान आदि

🔹 चार विशेष एकादशियाँ:

  1. देवशयनी एकादशी (आषाढ़) – भगवान शयन करते हैं
  2. पद्मिनी/परमा एकादशी (श्रावण) – विशेष पुण्यदायिनी
  3. इंदिरा/पर्वा एकादशी (आश्विन) – पितृ उद्धार के लिए
  4. प्रबोधिनी एकादशी (कार्तिक) – भगवान जागते हैं

इन चार एकादशियों का अत्यंत महत्व है और यह पूरे चातुर्मास को नियंत्रित करती हैं।


🔹 निष्कर्ष:

भगवान का चार महीने के लिए “सोना” एक गहरा प्रतीक है — यह हमें यह सिखाता है कि जब ईश्वर प्रत्यक्ष न दिखें, तब भी हमें धर्म, संयम और साधना के मार्ग पर चलना चाहिए।

चातुर्मास आत्मानुशासन, शुद्धिकरण और पुनर्जागरण का काल है। यह काल हमारी शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्ति को जाग्रत करने का सुनहरा अवसर है।

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