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🔱 भूमिका: हरियाली तीज का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
हरियाली तीज नारी जीवन की आस्था, प्रकृति की समरसता और वैवाहिक प्रेम का अनुपम प्रतीक है। यह पर्व विशेषकर उत्तर भारत में महिलाओं द्वारा श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है, जब चारों ओर हरियाली की चादर बिछी होती है और वर्षा ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है।
🟢 हरियाली तीज का महात्म्य और सांस्कृतिक रहस्य
🔱 भाग 1: हरियाली तीज क्या है? – एक परिचय
हरियाली तीज भारतीय उपमहाद्वीप की महिलाओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और उत्सवपूर्ण व्रत है, जो विशेष रूप से उत्तरी भारत के राज्यों—राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और हरियाणा—में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है, जब संपूर्ण वातावरण हरियाली से सराबोर होता है। यह पर्व महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, विशेषकर विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए यह व्रत करती हैं।
‘तीज’ शब्द का अर्थ होता है—तीसरा। इसलिए यह पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को मनाया जाता है और इसे हरियाली तीज कहा जाता है, क्योंकि यह हरियाली के मौसम—मानसून—में आता है। यह पर्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हरियाली तीज को ‘श्रावणी तीज’, ‘श्रृंगार तीज’ और ‘चोटी तीज’ भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं हरे वस्त्र पहनती हैं, मेहंदी लगाती हैं, झूला झूलती हैं और पारंपरिक लोकगीत गाती हैं। यह पर्व स्त्री जीवन की भावनाओं, उनकी सौंदर्यबोधिता और सामाजिक सहभागिता का उत्सव है।
❤️ भाग 2: हरियाली तीज और वैवाहिक जीवन
हरियाली तीज को विशेष रूप से वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि से जोड़ा गया है। यह पर्व स्त्रियों को समर्पित है, जहां वे अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। विवाहित महिलाएं इस दिन श्रृंगार करती हैं, हरे वस्त्र, चूड़ियां, बिंदियां पहनती हैं और अपनी सहेलियों के साथ मिलकर उत्सव मनाती हैं।
पुराणों के अनुसार, यह व्रत माता पार्वती द्वारा भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किए गए कठोर तप का प्रतीक है। जब उन्होंने लगातार 108 बार जन्म लेकर तप किया, तब भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसलिए, हरियाली तीज को ‘शिव-पार्वती मिलन’ का पर्व भी कहा जाता है।
यह कथा हर स्त्री को यह प्रेरणा देती है कि प्रेम, समर्पण और धैर्य से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है। पति-पत्नी के बीच की आत्मीयता, समझ और समर्पण की भावना को यह पर्व पुष्ट करता है। आज भी अनेक महिलाएं पारंपरिक रूप से इस व्रत को रखती हैं और रात्रि में कथा श्रवण कर व्रत का पारायण करती हैं।
🌧️ भाग 3: ऋतु और पर्यावरण से जुड़ाव
हरियाली तीज केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक पर्व नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण और प्राकृतिक चक्रों से भी जुड़ा हुआ है। यह पर्व सावन मास में आता है, जब प्रकृति अपने सबसे सुंदर रूप में होती है—हर तरफ हरियाली, वर्षा की फुहारें, खेतों में लहराती फसलें, और वनस्पतियों की ताजगी।
प्रकृति के इस उल्लासमय रूप का उत्सव मनाने के लिए ही ‘हरियाली तीज’ मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं आम के पेड़ या नीम के पेड़ की डालियों पर झूला डालती हैं और लोकगीतों के साथ झूलती हैं। यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि पेड़ों से जुड़ाव और पर्यावरण के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है।
गांवों में आज भी ‘तीज का मेला’ लगता है, जिसमें पारंपरिक हस्तशिल्प, लोकनृत्य, गीत और कृषि उपज की झलक देखने को मिलती है। यह पर्व ग्रामीण संस्कृति और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का सजीव प्रमाण है।
🧘♀️ भाग 4: व्रत और महिला सशक्तिकरण
हरियाली तीज यद्यपि धार्मिक भावभूमि पर आधारित है, लेकिन इसके भीतर एक गहरा स्त्री सशक्तिकरण का भाव भी छिपा है। यह पर्व महिलाओं को सामाजिक रूप से एकजुट करता है और उन्हें अपनी भावनाओं, इच्छाओं और संस्कृति को अभिव्यक्त करने का अवसर देता है।
इस दिन महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं, लोकनृत्य करती हैं और सामूहिकता का अनुभव करती हैं। यह आपसी सहयोग, बहनचारा और स्त्री समुदाय की ताकत को दर्शाता है। व्रत रखना, कथा सुनना और देवी पार्वती के प्रतीक रूप में स्वयं को सजाना—यह सब स्त्री चेतना को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
हरियाली तीज का व्रत मातृशक्ति के रूप में स्त्रियों की भूमिका को सम्मानित करता है। यह पर्व स्त्रियों को अपने आत्मबल और धार्मिक विश्वास को प्रकट करने का एक माध्यम प्रदान करता है, जिससे वे न केवल अपनी आध्यात्मिकता बल्कि सामाजिक स्थिति को भी सुदृढ़ करती हैं।
🎊 भाग 5: हरियाली तीज की रस्में रीति-रिवाज़
हरियाली तीज पर अनेक विशेष रस्में होती हैं:
- स्विंग (झूला) रस्म:
महिलाएं आम के पेड़ या किसी अन्य स्थान पर झूले डालती हैं और सावन के गीत गाकर झूलती हैं। यह रस्म प्रकृति से जुड़ाव और बालसुलभ हर्षोल्लास का प्रतीक होती है। - सिंदूर दान और साज-श्रृंगार:
विवाहित महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर देती हैं। यह सौभाग्य की कामना का प्रतीक है। - हलवा-पूरी और तीज भोज:
विशेष पकवान जैसे घेवर, मालपुआ, हलवा, पूरी आदि बनाए जाते हैं। घर-घर में तीज के गीत और भोजन की खुशबू होती है। - तीज माता की पूजा:
मिट्टी से बनी देवी पार्वती की प्रतिमा की पूजा की जाती है। महिलाएं कथा सुनती हैं और आरती करती हैं।
🎨 भाग 6: श्रृंगार, सोलह सिंगार और मेहंदी का महत्व
हरियाली तीज पर श्रृंगार और सोलह सिंगार का विशेष महत्व होता है। यह केवल बाह्य सौंदर्य नहीं, बल्कि एक आंतरिक आत्म-संवर्धन की प्रक्रिया भी है। भारतीय संस्कृति में श्रृंगार नारी की आत्मा का उत्सव माना जाता है, और हरियाली तीज पर यह अपने चरम रूप में दिखाई देता है।
🌿 सोलह श्रृंगार क्या हैं?
भारतीय परंपरा में ‘सोलह श्रृंगार’ नारी के पूर्ण स्त्रीत्व का प्रतीक माने जाते हैं। हरियाली तीज पर महिलाएँ इन सोलह श्रृंगारों को धारण करती हैं:
- बिंदी – आज्ञा चक्र को जागृत करता है।
- सिंदूर – विवाह का प्रतीक और सौभाग्य का चिन्ह।
- मांग टीका – मस्तिष्क के मध्य बिंदु पर सौंदर्य व ऊर्जा संतुलन।
- काजल – नज़र दोष से रक्षा व आकर्षण।
- नथ (नाक की बाली) – सौंदर्य व सांसों की ऊर्जा नियंत्रण।
- कर्णफूल (कान की बाली) – वाणी शुद्धि व स्त्रीत्व का प्रतीक।
- हार (मंगलसूत्र व अन्य गहने) – वैवाहिक बंधन का प्रतीक।
- बाजूबंद – ऊर्जा प्रवाह का संतुलन।
- चूड़ियाँ – हाथों की ऊर्जा को संतुलित करती हैं।
- अंगूठियाँ – ऊर्जा केंद्रों को सक्रिय करती हैं।
- कमरबंद – शरीर की मुद्रा को संतुलित करता है।
- पायल – पैरों की ऊर्जा को सशक्त करती है।
- बिछुए – विवाहित स्त्री का प्रतीक।
- अत्तर/इत्र – सौंदर्य व आकर्षण की सुगंध।
- गजरा/फूलों का श्रृंगार – प्रकृति और स्त्रीत्व का सामंजस्य।
- लाल/हरी साड़ी या परिधान – सौभाग्य व हरियाली का प्रतीक।
🌿 मेहंदी का वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व
- ठंडक देती है: मेहंदी शरीर में गर्मी को संतुलित करती है, जिससे मानसून के मौसम में राहत मिलती है।
- ऊर्जा संतुलन: हथेलियों और तलवों पर मेहंदी लगाने से ऊर्जा केंद्र सक्रिय होते हैं।
- शगुन: मेहंदी विवाह और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है।
- भावनात्मक जुड़ाव: मेहंदी रचाते समय परिवार, बहनें, सखियाँ एकत्र होती हैं, जो सामूहिक ऊर्जा और प्रेम को बढ़ाता है।
🌿 हरे वस्त्र और आभूषण
हरियाली तीज पर महिलाएँ हरे वस्त्र पहनती हैं जो न केवल प्रकृति से सामंजस्य का प्रतीक हैं, बल्कि हरे रंग को आयुर्वेद में हृदय व संतुलन से भी जोड़ा गया है। यह रंग उत्साह, प्रेम और पुनर्जागरण का प्रतीक होता है।
🌿 तीज का श्रृंगार – एक आंतरिक उत्सव
यह श्रृंगार बाहरी सौंदर्य का नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन और आत्म-समर्पण का भी उत्सव है। हरियाली तीज स्त्री के भीतर की देवी शक्ति को जगाने का पर्व है – जो प्रकृति से जुड़ती है, प्रेम से भरती है और शक्ति का सृजन करती है।
🎶 भाग 7: हरियाली तीज के गीत, लोककला और सांस्कृतिक रंग
हरियाली तीज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, यह भारतीय लोकसंस्कृति और सांस्कृतिक धरोहर का एक समृद्ध रंगमंच है। इसमें स्त्रियाँ गीतों, लोकनृत्य और पारंपरिक कलाओं के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करती हैं। आइए इस भाग में इस सांस्कृतिक पक्ष की गहराई से पड़ताल करें:
7.1 हरियाली तीज के लोकगीत:
हरियाली तीज पर गाए जाने वाले गीत न केवल पर्व के उल्लास को अभिव्यक्त करते हैं, बल्कि स्त्रियों के मनोभावों, उनके ससुराल जीवन, और सौभाग्य की कामना को भी दर्शाते हैं। कुछ प्रमुख गीत विषय:
- सावन की बहार: “काले मेघा पानी तो बरसा…”
- पिया मिलन की आस: “नीक लागे मोरे सैय्यां के संग झूला…”
- सास-ननद के नोक-झोंक: “ननदी तो बड़की बोलनिया…
इन गीतों में हास्य, तंज और प्रेम सभी भाव समाहित होते हैं।
7.2 लोकनृत्य और झूला संस्कार:
हरियाली तीज में झूला पड़ता है—पेड़ों की शाखों पर मजबूत रस्सी से झूले बांधकर महिलाएं उसमें झूलती हैं। इस अवसर पर महिलाएं समूहों में झूला गीत गाते हुए लोकनृत्य करती हैं, जो सामूहिकता और स्त्री ऊर्जा का सुंदर प्रदर्शन होता है।
लोकनृत्य के प्रकार:
- हरियाणवी घूमर
- राजस्थानी घूमर
- ब्रज लोकनृत्य
- बुंदेलखंडी ‘झूला नृत्य’
7.3 लोककलाओं में पर्व का प्रभाव:
इस दिन पारंपरिक चित्रकलाओं में भी हरियाली तीज की छवि उतरती है:
- मधुबनी चित्रों में स्त्रियाँ झूला झूलती दिखाई जाती हैं।
- वारली और पिथौरा चित्रकला में सावन, झूला, और मेहंदी जैसे प्रतीकों को दिखाया जाता है।
- आलता और मेहंदी के डिजाइन विशेष होते हैं – पत्ती, बेल, और झूले की आकृति प्रमुख रहती है।
7.4 सांस्कृतिक आयोजनों की परंपरा:
कई स्थानों पर तीज के अवसर पर मेलों का आयोजन होता है।
- दिल्ली, जयपुर और चंडीगढ़ में भव्य झांकियाँ निकलती हैं।
- महिला मंडल प्रतियोगिताएं जैसे– झूला गायन, सबसे सुंदर मेहंदी, और पारंपरिक परिधान प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं।
🎨 हरियाली तीज एक ऐसा पर्व है जहाँ भारतीय लोकसंस्कृति, स्त्री शक्ति, और प्रकृति का त्रिवेणी संगम होता है।
🌸 भाग 8: हरियाली तीज व्रत की विधि – पूजा, कथा और नियम
हरियाली तीज का व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए अत्यंत पुण्यदायी और फलदायी माना जाता है। यह व्रत न केवल सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है, बल्कि वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि और पति की दीर्घायु के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। नीचे इस व्रत की पूरी विधि, कथा और नियमों को चरणबद्ध बताया गया है:
🪔 1. व्रत की तैयारी
- स्नान और शुद्धि: तीज के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें। साफ सुथरे वस्त्र पहनें (अधिकतर महिलाएं हरे रंग के वस्त्र और चूड़ियाँ पहनती हैं)।
- व्रत संकल्प: देवी पार्वती का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें: “मैं हरियाली तीज का निर्जला व्रत करती हूँ, जिससे मुझे अखंड सौभाग्य, सुहाग और पार्वती जैसी नारीत्व प्राप्त हो।”
🌼 2. पूजन सामग्री
- मिट्टी की बनी शिव-पार्वती की मूर्ति या फोटो
- अक्षत (चावल), कुमकुम, हल्दी, रोली
- फूल (विशेषकर बेला, चमेली, गुलाब)
- बेलपत्र, दूर्वा
- पान, सुपारी, नारियल
- घी का दीपक, अगरबत्ती
- फल, मिठाई, श्रृंगार सामग्री (16 श्रृंगार)
- झूला (शिव-पार्वती को झूला झुलाने हेतु)
🛐 3. पूजा विधि
- पंडाल सजाएं: सबसे पहले पूजा स्थल को स्वच्छ करके रंगोली से सजाएं। झूला रखें और उसमें भगवान शिव-पार्वती की मूर्तियां रखें।
- दीप प्रज्ज्वलन: दीपक जलाकर पूजा आरंभ करें।
- शिव-पार्वती पूजन: सबसे पहले शिव जी की पूजा करें। फिर माता पार्वती को सुहाग सामग्री अर्पित करें।
- कथा श्रवण: हरियाली तीज व्रत कथा सुनना अनिवार्य माना गया है। यह कथा माता पार्वती के तप और शिव प्राप्ति के संकल्प को दर्शाती है (नीचे कथा दी गई है)।
- भजन और कीर्तन: महिलाएं सामूहिक रूप से भजन, लोकगीत और तीज के गीत गाती हैं।
- अंत में आरती: माता पार्वती और शिवजी की आरती करें। फिर सभी को प्रसाद बांटें।
📖 4. हरियाली तीज व्रत कथा
प्राचीन काल में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अनेक जन्मों तक तप किया। यह उनका 108वाँ जन्म था, जब उन्होंने कठोर तप करके शिव को प्रसन्न किया। इस दिन अर्थात श्रावण शुक्ल तृतीया को भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया। तभी से यह दिन “हरियाली तीज” के रूप में मनाया जाता है।
माता पार्वती का यह अटल व्रत, दृढ़ निष्ठा और तप ही हरियाली तीज के व्रत का आधार है। इसी व्रत के माध्यम से स्त्रियाँ अपने पति की मंगलकामना करती हैं।
🔖 5. व्रत के नियम
- यह व्रत प्रायः निर्जला व्रत होता है यानी दिनभर जल ग्रहण भी नहीं किया जाता।
- केवल सुहागिन स्त्रियाँ ही यह व्रत करती हैं, परंतु कन्याएँ भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए कर सकती हैं।
- इस दिन किसी भी प्रकार का क्रोध, कटु वचन, विवाद या अपवित्र आचरण वर्जित होता है।
- दिन भर माता पार्वती और शिव जी का ध्यान करते रहना चाहिए।
- रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देना आवश्यक नहीं, परंतु कुछ परंपराओं में दिया जाता है।
- अगले दिन व्रत का पारण करें – फलाहार या भोजन लेकर।
🌺 6. सुहाग सामग्री का दान
हरियाली तीज के दिन कुछ स्थानों पर स्त्रियाँ अपने से बड़ी सुहागिन स्त्रियों को सोलह श्रृंगार की सामग्री, मिठाई, वस्त्र आदि भेंट करती हैं। इसे “हरियाली तीज की सौगात” या “सिंजारा” कहते हैं।
🎊 7. तीज का झूला
हरियाली तीज में झूला झूलने की परंपरा अत्यंत पावन मानी जाती है। माना जाता है कि यह प्रकृति और नारी ऊर्जा के संगम का प्रतीक है। महिलाएं सामूहिक रूप से पेड़ों पर झूला बांधकर पारंपरिक गीत गाती हैं और झूला झूलती हैं।
🌍 भाग 9: हरियाली तीज का सामाजिक और वैश्विक स्वरूप
9.1 आधुनिक समय में तीज का स्वरूप
हरियाली तीज की परंपरा, जो कभी केवल ग्रामीण क्षेत्रों और पारंपरिक महिलाओं तक सीमित थी, अब आधुनिक समाज में एक नई पहचान बना रही है। पहले यह त्योहार घर की चारदीवारी के भीतर सादगी से मनाया जाता था, लेकिन अब यह सांस्कृतिक मेलों, महिला सशक्तिकरण अभियानों और फैशन शो का भी हिस्सा बन गया है।
🔸 पारंपरिक से आधुनिक
महिलाएं पारंपरिक हरे वस्त्र, गहने, मेंहदी और लोकगीतों के साथ इस दिन को मनाती हैं, लेकिन अब सोशल मीडिया के ज़रिए यह उत्सव शहरों में रह रहीं महिलाओं, युवतियों और यहां तक कि पुरुषों तक भी पहुँचा है।
Online तीज competitions, Zoom पूजा, और सामूहिक कथा-श्रवण अब इस पर्व के नए रूप हैं।
🔸 Digital तीज उत्सव
आजकल Instagram, Facebook और YouTube जैसे प्लेटफॉर्म पर महिलाएं अपनी तीज की तैयारियाँ, श्रृंगार और पूजा साझा करती हैं।
इससे एक वैश्विक समुदाय बन रहा है, जहाँ महिला सशक्तिकरण, परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल रहे हैं।
9.2 भारत से विदेशों तक फैली परंपरा
हरियाली तीज अब केवल भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि प्रवासी भारतीयों के माध्यम से यह अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, दुबई और सिंगापुर तक पहुंच चुकी है।
🌍 प्रवासी भारतीयों की भूमिका
विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के परिवारों ने भारतीय परंपराओं को सहेज कर रखा है। तीज जैसे पर्व इन समुदायों के लिए अपनी जड़ों से जुड़े रहने का माध्यम बनते हैं।
विदेशों में भारतीय समुदाय द्वारा मंदिरों में सामूहिक पूजा, संगीत और नृत्य के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
🕌 सांस्कृतिक केंद्र बन गए हैं मंदिर
विदेशों में स्थित हिन्दू मंदिर अब न केवल पूजा स्थलों के रूप में, बल्कि सांस्कृतिक केंद्र के रूप में काम कर रहे हैं जहाँ हरियाली तीज जैसे त्योहारों को पारंपरिक रीति से मनाया जाता है। इससे नई पीढ़ी भारतीय संस्कृति को सीखती और अपनाती है।
9.3 सामाजिक एकता और महिला जागरूकता
हरियाली तीज केवल धार्मिक त्योहार नहीं, यह सामाजिक एकता, नारी चेतना, और स्त्री-सशक्तिकरण का भी प्रतीक बन चुका है।
👭 महिला सशक्तिकरण का उत्सव
हरियाली तीज महिलाओं को एक-दूसरे से जोड़ता है – यह त्योहार एक Safe Space देता है जहाँ महिलाएं अपनी भावनाओं, जीवन की कहानियों और संघर्षों को साझा कर सकती हैं।
NGOs और महिला संगठनों ने तीज को महिला स्वास्थ्य, शिक्षा और अधिकारों के प्रचार के लिए भी उपयोग करना शुरू किया है।
🤝 सामाजिक समरसता
हरियाली तीज जाति, वर्ग और क्षेत्र की सीमाओं को पार करके महिलाओं को एकजुट करता है। इसमें अमीर-गरीब, शहर-गांव सभी मिलकर एक ही भाव से ईश्वर, प्रकृति और प्रेम की उपासना करते हैं।
📣 जनजागरूकता अभियानों में तीज की भागीदारी
• बालिका शिक्षा,
• महिला स्वास्थ्य,
• घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूकता,
• वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण –
जैसे सामाजिक विषयों को आज तीज के मंच से उठाया जा रहा है।
हरियाली तीज अब सिर्फ ‘श्रृंगार और व्रत’ का पर्व नहीं रहा, यह स्त्रियों की एकजुटता, सांस्कृतिक चेतना और समाज में उनके स्थान को पुनर्परिभाषित करने का माध्यम बन चुका है।
भारत की सीमाओं से निकलकर यह त्योहार अब वैश्विक भारतीय पहचान का हिस्सा है, जो परंपरा और आधुनिकता के सेतु पर मजबूती से खड़ा है।
📚 भाग 10: साहित्य, कला और तीज – सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का उत्सव
🔖 10.1 लोककाव्य और तीज गीत – लोकजीवन की आत्मा
हरियाली तीज न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि एक सांस्कृतिक पर्व भी है, जिसमें लोककाव्य और तीज गीतों की गूंज होती है।
ग्रामीण भारत की गलियों में महिलाएं समूह बनाकर लोकगीत गाती हैं, जो अक्सर शृंगार रस से ओतप्रोत होते हैं। इन गीतों में सावन की बूंदों का सौंदर्य, प्रियतम की प्रतीक्षा, और शिव-पार्वती के प्रेम का आदर्श रूप चित्रित होता है।
- “काजर की कोरी बदरिया छाई…”,
- “सावन आयो रे, झूला पड्यो रे…”
जैसे गीतों में उत्सव, प्रेम और विरह का जीवंत चित्रण मिलता है।
लोकगीतों में स्त्री की पीड़ा, उसके स्वप्न और समाज की भावना का गहरा प्रतिबिंब होता है।
🎨 10.2 चित्रकला और तीज की झांकी – रंगों में रचा पर्व
हरियाली तीज की भावना भारतीय लोकचित्रण में भी गहराई से समाई है।
मधुबनी, पिचवाई, फड़ पेंटिंग और वारली कला जैसी परंपरागत चित्रशैलियों में तीज उत्सव के दृश्य उकेरे जाते हैं:
- महिलाएं झूला झूल रही होती हैं
- मेहंदी रचाई जा रही होती है
- भगवान शिव-पार्वती की पूजा की झांकी बनाई जाती है
मूर्ति कला, घरों की रंगोली, और झांकियों में सजाए गए शिव-पार्वती तीज को एक जीवंत कला महोत्सव का स्वरूप प्रदान करते हैं।
🎬 10.3 फिल्मों और साहित्य में तीज का चित्रण
भारतीय सिनेमा और साहित्य ने भी तीज को सुंदरता से प्रस्तुत किया है।
विशेषकर हिंदी फिल्मों में सावन और तीज गीतों का भावनात्मक महत्व है। उदाहरण:
- फ़िल्मों में सावन के गीतों जैसे –
“सावन का महीना पवन करे शोर…”
“झूला किन डारो रे अमवा की डार पे…”
इनमें तीज की झलक साफ दिखाई देती है।
साहित्यकारों ने भी तीज को महिला-जीवन, प्रकृति और भक्ति से जोड़ते हुए काव्य, उपन्यास और लघु कहानियों में स्थान दिया है।
✅ निष्कर्ष:
हरियाली तीज केवल एक पर्व नहीं बल्कि नारीत्व, प्रकृति, प्रेम और संस्कृति का उत्सव है। यह परंपरा आज भी हर महिला के जीवन में नई ऊर्जा, नई आस्था और नया उल्लास भरती है। यह दिन शिव-पार्वती के प्रेम को स्मरण कर आत्मबल और वैवाहिक जीवन में सौंदर्य भरने का अवसर देता है।
शिव-पार्वती विवाह कथा
श्रावण मास के 11 रहस्य
सोलह श्रृंगार का वैज्ञानिक रहस्य
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1 thought on “हरियाली तीज: प्रकृति, प्रेम और पारंपरिक आस्था का उत्सव”