प्रकृति, प्रेम और पारंपरिक आस्था का उत्सव
Table of Contents

🌿 भाग 1: हरियाली तीज का इतिहास और उत्पत्ति
1.1 पौराणिक कथा: पार्वती और शिव की अनंत प्रेमगाथा
हरियाली तीज की मूल कथा देवी पार्वती और भगवान शिव के अनंत प्रेम से जुड़ी है। यह व्रत उस दिन की स्मृति में रखा जाता है जब देवी पार्वती ने 108 जन्मों तक तपस्या करके भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था।
देवी पार्वती का संकल्प और तपस्या, स्त्री धर्म और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन को विवाह और प्रेम की अमरता का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि “तीज के दिन शिव ने पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया,” और तभी से यह दिन अखंड सौभाग्य, प्रेम और समर्पण का पर्व बन गया।
1.2 लोक परंपराओं में तीज की स्थापना
हरियाली तीज का स्वरूप केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है। सदियों से भारत के विभिन्न हिस्सों—राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में—यह पर्व सावन मास में मनाया जाता है।
लोककथाओं, गीतों और नृत्य के माध्यम से यह पर्व महिलाओं की भावनाओं, प्रतीक्षा, प्रेम और सौंदर्य को व्यक्त करता है। इसमें झूला झूलना, मेहंदी लगाना, नई-नई पोशाकें पहनना और तीज गीत गाना इस पर्व की प्रमुख परंपराएं हैं।
1.3 हरियाली तीज और अन्य तीजों का अंतर
भारत में तीज के तीन प्रमुख रूप होते हैं:
तीज का नाम | समय | महत्व |
---|---|---|
हरियाली तीज | श्रावण शुक्ल तृतीया | शिव-पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक |
कजली तीज | भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया | राधा-कृष्ण की भक्ति से जुड़ी भावनात्मक तीज |
अक्खा तीज / अक्षय तृतीया | वैशाख शुक्ल तृतीया | शुभ कार्यों के आरंभ का दिन |
हरियाली तीज विशेषतः सुहागिन महिलाओं के लिए होता है, जबकि अन्य तीजों का महत्व भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग है।
👨 भाग 2: हरियाली तीज और वैवाहिक जीवन
🌺 2.1 सुहागिनों का व्रत और श्रृंगार
हरियाली तीज मुख्यतः सुहागिन महिलाओं का पर्व माना जाता है, जो अपने पति की दीर्घायु, प्रेम, और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं लाल, हरे या पीले रंग की साड़ियों या लहरियों के पारंपरिक वस्त्र पहनती हैं, और विशेष रूप से “सोलह श्रृंगार” करती हैं, जिसमें चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर, मेंहदी, काजल, नथ, बाजूबंद, पायल, बिछुए आदि सम्मिलित होते हैं।
श्रृंगार तीज के सौंदर्य और नारीत्व के प्रतीक हैं। इससे न केवल नारी स्वयं को सुंदर महसूस करती है, बल्कि यह उसकी आंतरिक शक्ति और आत्मबल को भी जाग्रत करता है।
💖 2.2 पति की लंबी उम्र के लिए व्रत का महत्व
हरियाली तीज पर निर्जला व्रत रखा जाता है, जिसमें महिलाएं बिना जल ग्रहण किए पूरा दिन उपवास करती हैं। यह कठिन तपस्या पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सौभाग्य के लिए समर्पित होती है।
पौराणिक मान्यता है कि मां पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए 107 बार जन्म लिया और अंततः 108वें जन्म में हरियाली तीज के दिन शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस तरह यह व्रत नारी के समर्पण, प्रेम और धैर्य का प्रतीक बन गया है।
🕊️ 2.3 प्रेम और समर्पण की प्रतीकात्मकता
हरियाली तीज केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि वैवाहिक प्रेम और नारी शक्ति का उत्सव है। यह दिन स्त्रियों के बीच भावनात्मक एकता, परस्पर सहयोग, और पारिवारिक मूल्य प्रणाली को सुदृढ़ करने का भी अवसर बनता है।
इस दिन महिलाएं झूले पर झूलती हैं, तीज के गीत गाती हैं, और अपनी सहेलियों के साथ मिलकर पारंपरिक नृत्य और कथा वाचन करती हैं। यह सारी गतिविधियाँ नारी के भावनात्मक पक्ष को प्रकट करती हैं, और यह बताती हैं कि विवाह केवल सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि आत्मिक और आध्यात्मिक यात्रा है।
🌧️ भाग 3: ऋतु और पर्यावरण से जुड़ाव
हरियाली तीज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति और पर्यावरण के साथ हमारे सांस्कृतिक संबंध को दर्शाने वाला एक सुंदर प्रतीक भी है। श्रावण मास की वर्षा ऋतु में मनाया जाने वाला यह उत्सव न केवल वातावरण को हरा-भरा बनाता है, बल्कि हमारे भीतर पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और संरक्षण का भाव भी जाग्रत करता है।
🌱 3.1 वर्षा ऋतु और धरती की उर्वरता
श्रावण मास वर्षा ऋतु का चरम होता है। हरियाली तीज के समय पेड़-पौधे, जंगल, खेत और बाग-बगीचे अपनी संपूर्ण हरियाली के साथ धरती को सजाते हैं। यह वह समय होता है जब—
- धरती की उर्वरता चरम पर होती है।
- किसान अपने खेतों में बुवाई करते हैं,
- नदियां, तालाब, झीलें भरने लगती हैं,
- वातावरण में नमी बढ़ने से वनस्पति का पुनर्जन्म होता है।
🌧️ तीज और वर्षा का यह मेल नारी जीवन की उर्वरता और सृजनशक्ति का भी प्रतीक है। जिस प्रकार वर्षा धरती को नवजीवन देती है, उसी तरह नारी भी परिवार और समाज में जीवनदायिनी ऊर्जा लाती है।
🍃 3.2 तीज और हरियाली के प्रतीक
हरियाली तीज का नाम ही “हरियाली” से जुड़ा हुआ है। यह त्योहार प्रकृति के सौंदर्य और हरियाली की पूजा है। परंपरा के अनुसार—
- महिलाएं हरी चूड़ियां, हरी साड़ी, और मेहंदी लगाकर हरियाली को जीवन में धारण करती हैं।
- पेड़-पौधों को पूजा जाता है, विशेषकर नीम, पीपल और तुलसी को।
- झूले पर झूलना, हरे वस्त्र पहनना, लोकगीत गाना – ये सब हरियाली तीज के मुख्य प्रतीक हैं।
🌳 ये प्रतीक न केवल सुंदरता को दर्शाते हैं, बल्कि प्राकृतिक जीवनशैली और पर्यावरणीय संतुलन की भी याद दिलाते हैं।
🌍 3.3 पर्यावरण संरक्षण का संदेश
हरियाली तीज का सबसे गहरा संदेश है — “प्रकृति के साथ सामंजस्य”।
- यह पर्व हमें वृक्षारोपण, जल संरक्षण, और प्राकृतिक संसाधनों के सम्मान की प्रेरणा देता है।
- कई क्षेत्रों में हरियाली तीज पर पेड़ लगाने की परंपरा है।
- घरों और मंदिरों को प्राकृतिक फूलों और पत्तों से सजाया जाता है, न कि प्लास्टिक से।
🌿 आज के समय में जब पर्यावरण संकट गंभीर होता जा रहा है, हरियाली तीज हमें याद दिलाता है कि हमारी परंपराएं हमेशा से प्रकृति के साथ जीने की सीख देती आई हैं।
💃 भाग 4: उत्सव की रस्में और परंपराएं
हरियाली तीज न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है जो समाज को जीवंतता और आनंद से भर देता है। इस भाग में हम जानेंगे कि किस प्रकार की परंपराएं, गीत, नृत्य और मेलों के माध्यम से यह पर्व सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है।
🌿 4.1 झूले का महत्त्व (Swing Rituals)
हरियाली तीज की सबसे विशेष परंपरा है “झूला झूलना”। गांव-देहात से लेकर शहरी कॉलोनियों तक, पेड़ों पर झूले बांध दिए जाते हैं। महिलाएं पारंपरिक पोशाक में झूला झूलती हैं, गाती हैं और आनंद मनाती हैं।
🔸 आध्यात्मिक भाव: झूला झूलना शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक माना जाता है।
🔸 सांस्कृतिक पक्ष: झूले सामाजिक मेलजोल का माध्यम बनते हैं – बहनें, सखियाँ एक साथ मिलती हैं।
🔸 प्राकृतिक जुड़ाव: ये झूले आमतौर पर नीम, पीपल या आम जैसे वृक्षों पर डाले जाते हैं, जिससे प्रकृति के प्रति प्रेम प्रकट होता है।
🎶 4.2 लोकगीत और लोकनृत्य (Folk Songs & Dances)
हरियाली तीज के दौरान महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाती हैं जो प्रेम, भक्ति और सौंदर्य से भरे होते हैं।
🔸 गीतों का उद्देश्य:
- पार्वती और शिव की कथा गाने की परंपरा
- सास-बहू, ननद-भाभी की हंसी-मजाक से जुड़े गीत
- वर्षा, हरियाली और प्रेमभाव पर आधारित रचनाएँ
🔸 लोकनृत्य:
- राजस्थान में घूमर, हरियाणा में फाग, और मध्यप्रदेश में गारबा जैसे नृत्य इस समय किए जाते हैं।
- ये नृत्य समूह में होते हैं, जिससे आपसी सामंजस्य और उत्सव की ऊर्जा बढ़ती है।
🏞️ 4.3 पारंपरिक तीज मेले और उत्सव (Traditional Fairs & Celebrations)
हरियाली तीज के अवसर पर विभिन्न स्थानों पर पारंपरिक तीज मेले लगाए जाते हैं जो विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं।
🔹 प्रमुख स्थानों के मेले:
- जयपुर का हरियाली तीज मेला विश्व प्रसिद्ध है – इसमें पारंपरिक तीज यात्रा, बग्गी में देवी पार्वती की शोभायात्रा, हाथी-घोड़े और लोक कलाएं दिखाई जाती हैं।
- हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश में भी ग्रामीण मेलों का आयोजन होता है।
🔹 मेलों की खासियत:
- मेहंदी, चूड़ी, पारंपरिक साड़ियाँ और हस्तशिल्प की दुकानें
- पारंपरिक पकवान जैसे घेवर, मालपुआ, पूड़ी-सब्ज़ी
- बच्चों के झूले, लोक-नाट्य, और स्त्री-सशक्तिकरण पर केंद्रित कार्यक्रम
🍱 भाग 5: तीज के विशेष व्यंजन
तीज का त्योहार न केवल धार्मिक आस्था और प्रेम का प्रतीक है, बल्कि इसमें बनने वाले पारंपरिक व्यंजन भी इसे खास बनाते हैं। इन व्यंजनों में परंपरा, स्वाद और भावनाएं गहराई से जुड़ी होती हैं।
🧁 5.1 घेवर, मालपुआ और फेनी – तीज के तीन रत्न
➤ घेवर
राजस्थान की प्रसिद्ध मिठाई घेवर, तीज पर विशेष रूप से बनाई जाती है। यह मैदे और देसी घी से तैयार की जाती है, फिर ऊपर से चाशनी में डुबोया जाता है और मावे, पिस्ता व चांदी के वर्क से सजाया जाता है। यह मिठास प्रेम और सौहार्द का प्रतीक मानी जाती है।
➤ मालपुआ
मालपुआ एक परंपरागत भारतीय मीठा पैनकेक है, जिसे दूध, मैदा और गुड़/चीनी से तैयार किया जाता है। इसे तीज पर खास तौर पर बनाया जाता है और पकवानों में पहला स्थान मिलता है।
➤ फेनी (सेवईं)
फेनी यानी झार-सी सेवईं को दूध या चाशनी में पकाकर मीठे रूप में परोसा जाता है। ये हल्का और स्वादिष्ट व्यंजन व्रती स्त्रियों के लिए प्रिय होता है।
🍽️ 5.2 तीज की थाली और पकवानों का महत्व
तीज पर बनने वाली थाली केवल भोजन नहीं होती, बल्कि यह पारंपरिक संस्कृति का स्वाद होती है। एक तीज थाली में आमतौर पर होते हैं:
- मीठा – घेवर, मालपुआ, फेनी
- नमकीन – पूड़ी, कचौरी, आलू-सब्ज़ी
- पेय – ठंडाई या केसर दूध
- फल और सूखे मेवे
📿 महत्व:
यह थाली देवी पार्वती को अर्पित की जाती है और उसके बाद व्रती स्त्रियों द्वारा ग्रहण की जाती है। यह भोजन व्रत की समाप्ति के बाद शरीर को संतुलन देता है और सामाजिक मेल-मिलाप का जरिया बनता है।
🍛 5.3 प्रसाद और साझा भोज की परंपरा
➤ प्रसाद
घेवर और फलों को देवी पार्वती को अर्पित कर ‘श्रद्धा प्रसाद’ के रूप में वितरित किया जाता है। यह घर के सभी सदस्यों को बांटा जाता है।
➤ साझा भोज (community feast)
कई स्थानों पर महिलाएं सामूहिक रूप से भोजन बनाती हैं और एक-दूसरे के घर जाकर भोज में शामिल होती हैं। यह केवल पेट भरने का नहीं, बल्कि रिश्ते जोड़ने और एकता को मजबूत करने का माध्यम बनता है।
🛕 भाग 6: धार्मिक अनुष्ठान और पूजा विधि
हरियाली तीज केवल एक सांस्कृतिक पर्व नहीं, बल्कि यह एक गहन धार्मिक साधना का अवसर भी है। इस दिन सुहागिनें विशेष नियमों का पालन करते हुए व्रत रखती हैं और शिव-पार्वती का पूजन करती हैं। यह भाग व्रत की विधि, पूजन पद्धति, कथा और आरती की समग्र जानकारी देता है।
6.1 व्रत की विधि और नियम (Vrat Vidhi aur Niyam)
हरियाली तीज व्रत निर्जला (बिना पानी के) भी रखा जाता है, जिसे कठिनतम व्रतों में माना गया है। यह व्रत मुख्यतः विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख-शांति के लिए करती हैं।
📜 व्रत नियम:
- व्रत रखने वाली महिला स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
- दिनभर अन्न-जल का त्याग करती हैं।
- मन, वाणी और कर्म से पवित्रता बनाए रखना आवश्यक होता है।
- व्रत में क्रोध, निंदा, अपवित्रता से बचना चाहिए।
- अगर स्वास्थ्य ठीक न हो तो फलाहार के रूप में व्रत किया जा सकता है।
6.2 शिव-पार्वती पूजन (Shiv-Parvati Pujan)
हरियाली तीज पर माता पार्वती जी को ‘तीज माता’ के रूप में पूजा जाता है। यह दिन माता पार्वती द्वारा भगवान शिव को पति रूप में पाने की 108वां जन्म प्रयास की स्मृति भी है।
🪔 पूजन विधि:
- पूजा के लिए एक स्वच्छ चौकी पर लाल/पीले वस्त्र बिछाकर शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- कुमकुम, हल्दी, मेहंदी, अक्षत, पुष्प, दीपक, नैवेद्य, और सुहाग सामग्री अर्पित करें।
- माता पार्वती को चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर, चुनरी, मेंहदी आदि समर्पित करें।
- भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, भांग, शुद्ध जल और गंगाजल अर्पण करें।
🙏 पूजा करते समय विशेष रूप से यह प्रार्थना करें:
“हे गौरी माता, जैसे आपने शिवजी को प्राप्त किया, वैसे ही मेरा वैवाहिक जीवन भी सुखमय हो और मेरे पति की आयु दीर्घ हो।”
6.3 कथा श्रवण और आरती (Teej Katha & Aarti)
पूजन के बाद हरियाली तीज की कथा का श्रवण अत्यंत आवश्यक होता है। यह कथा देवी पार्वती की तपस्या और शिव को पति रूप में प्राप्त करने की गाथा है।
📖 हरियाली तीज की कथा संक्षेप में:
- देवी पार्वती ने 108 जन्मों तक कठोर तपस्या की।
- अंततः भगवान शिव ने पार्वती की भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर विवाह स्वीकार किया।
- यह दिन उसी पावन संयोग का प्रतीक है।
- कथा सुनने से व्रती को कष्टों से मुक्ति और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।
🎶 आरती:
“जय शिव ओमकारा, स्वामी जय शिव ओमकारा…”
या
“गौरी शंकर आरती, सुन्दर दोऊ रूप…“
कथा और आरती के बाद, प्रसाद वितरण और सुहाग सामग्री का आदान-प्रदान होता है।
💫 भाग 7: स्त्री सशक्तिकरण और आध्यात्मिक साधना
हरियाली तीज व्रत न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह स्त्री के आध्यात्मिक विकास, आत्मसंयम और शक्ति साधना का गहन प्रतीक भी है। यह पर्व दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में स्त्रियों की भूमिका केवल सामाजिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और तात्त्विक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
🔹 7.1 व्रत और आत्मसंयम
हरियाली तीज का व्रत अत्यंत कठिन होता है—निर्जला व्रत, यानी बिना अन्न-जल के।
यह व्रत स्त्रियों के आत्मसंयम, मन की एकाग्रता और इच्छाशक्ति का प्रतीक है।
- व्रत केवल शरीर को कष्ट देने का नहीं, मन और इंद्रियों को साधने का अभ्यास है।
- यह स्त्री को संकल्प शक्ति का अनुभव कराता है, जिससे वह स्वयं में आत्मबल का बोध करती है।
- आज की आधुनिक महिला के लिए यह एक अवसर है, ध्यान, संतुलन और स्वयं की ऊर्जा को जाग्रत करने का।
🔹 7.2 पार्वती के रूप में नारी शक्ति का बोध
हरियाली तीज, माता पार्वती के 108 जन्मों के कठोर तप का प्रतीक है।
- पार्वती जी ने शिव को पाने के लिए नहीं, बल्कि स्वयं को साधकर महाशक्ति बनने के लिए तप किया।
- यह स्त्री को सिखाता है कि वह स्वयं में पूर्ण है, देवी है — शक्ति का साक्षात रूप।
- स्त्रियाँ जब यह व्रत करती हैं, तो वह केवल एक रीति नहीं निभा रहीं, बल्कि वे उस शक्ति-तत्व से जुड़ती हैं जो उन्हें हर कठिनाई से पार करवा सकता है।
🔹 7.3 योग, ध्यान और शक्ति साधना
हरियाली तीज केवल रीति नहीं है — यह एक आध्यात्मिक यात्रा है:
- व्रत के दौरान स्त्रियाँ मौन, ध्यान, और जप करती हैं, जिससे मन का शुद्धिकरण होता है।
- शिव-पार्वती पूजन का अर्थ है — योग और शक्ति का मिलन, यानी जीवन में संतुलन का आह्वान।
- यह साधना स्त्री को न केवल धार्मिक रूप से जागरूक बनाती है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी सशक्त करती है।
🌸 भाग 8: हरियाली तीज व्रत की विधि – पूजा, कथा और नियम
हरियाली तीज का व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए अत्यंत पुण्यदायी और फलदायी माना जाता है। यह व्रत न केवल सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है, बल्कि वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि और पति की दीर्घायु के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। नीचे इस व्रत की पूरी विधि, कथा और नियमों को चरणबद्ध बताया गया है:
🪔 8.1 व्रत की तैयारी
- स्नान और शुद्धि: तीज के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें। साफ सुथरे वस्त्र पहनें (अधिकतर महिलाएं हरे रंग के वस्त्र और चूड़ियाँ पहनती हैं)।
- व्रत संकल्प: देवी पार्वती का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें: “मैं हरियाली तीज का निर्जला व्रत करती हूँ, जिससे मुझे अखंड सौभाग्य, सुहाग और पार्वती जैसी नारीत्व प्राप्त हो।”
🌼 8.2 पूजन सामग्री
- मिट्टी की बनी शिव-पार्वती की मूर्ति या फोटो
- अक्षत (चावल), कुमकुम, हल्दी, रोली
- फूल (विशेषकर बेला, चमेली, गुलाब)
- बेलपत्र, दूर्वा
- पान, सुपारी, नारियल
- घी का दीपक, अगरबत्ती
- फल, मिठाई, श्रृंगार सामग्री (16 श्रृंगार)
- झूला (शिव-पार्वती को झूला झुलाने हेतु)
🛐 8.3 पूजा विधि
- पंडाल सजाएं: सबसे पहले पूजा स्थल को स्वच्छ करके रंगोली से सजाएं। झूला रखें और उसमें भगवान शिव-पार्वती की मूर्तियां रखें।
- दीप प्रज्ज्वलन: दीपक जलाकर पूजा आरंभ करें।
- शिव-पार्वती पूजन: सबसे पहले शिव जी की पूजा करें। फिर माता पार्वती को सुहाग सामग्री अर्पित करें।
- कथा श्रवण: हरियाली तीज व्रत कथा सुनना अनिवार्य माना गया है। यह कथा माता पार्वती के तप और शिव प्राप्ति के संकल्प को दर्शाती है (नीचे कथा दी गई है)।
- भजन और कीर्तन: महिलाएं सामूहिक रूप से भजन, लोकगीत और तीज के गीत गाती हैं।
- अंत में आरती: माता पार्वती और शिवजी की आरती करें। फिर सभी को प्रसाद बांटें।
📖 8.4 हरियाली तीज व्रत कथा
प्राचीन काल में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अनेक जन्मों तक तप किया। यह उनका 108वाँ जन्म था, जब उन्होंने कठोर तप करके शिव को प्रसन्न किया। इस दिन अर्थात श्रावण शुक्ल तृतीया को भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया। तभी से यह दिन “हरियाली तीज” के रूप में मनाया जाता है।
माता पार्वती का यह अटल व्रत, दृढ़ निष्ठा और तप ही हरियाली तीज के व्रत का आधार है। इसी व्रत के माध्यम से स्त्रियाँ अपने पति की मंगलकामना करती हैं।
🔖 8.5 व्रत के नियम
- यह व्रत प्रायः निर्जला व्रत होता है यानी दिनभर जल ग्रहण भी नहीं किया जाता।
- केवल सुहागिन स्त्रियाँ ही यह व्रत करती हैं, परंतु कन्याएँ भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए कर सकती हैं।
- इस दिन किसी भी प्रकार का क्रोध, कटु वचन, विवाद या अपवित्र आचरण वर्जित होता है।
- दिन भर माता पार्वती और शिव जी का ध्यान करते रहना चाहिए।
- रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देना आवश्यक नहीं, परंतु कुछ परंपराओं में दिया जाता है।
- अगले दिन व्रत का पारण करें – फलाहार या भोजन लेकर।
🌺 8.6 सुहाग सामग्री का दान
हरियाली तीज के दिन कुछ स्थानों पर स्त्रियाँ अपने से बड़ी सुहागिन स्त्रियों को सोलह श्रृंगार की सामग्री, मिठाई, वस्त्र आदि भेंट करती हैं। इसे “हरियाली तीज की सौगात” या “सिंजारा” कहते हैं।
🎊 8.7 तीज का झूला
हरियाली तीज में झूला झूलने की परंपरा अत्यंत पावन मानी जाती है। माना जाता है कि यह प्रकृति और नारी ऊर्जा के संगम का प्रतीक है। महिलाएं सामूहिक रूप से पेड़ों पर झूला बांधकर पारंपरिक गीत गाती हैं और झूला झूलती हैं।
🌍 भाग 9: हरियाली तीज का सामाजिक और वैश्विक स्वरूप
9.1 आधुनिक समय में तीज का स्वरूप
हरियाली तीज की परंपरा, जो कभी केवल ग्रामीण क्षेत्रों और पारंपरिक महिलाओं तक सीमित थी, अब आधुनिक समाज में एक नई पहचान बना रही है। पहले यह त्योहार घर की चारदीवारी के भीतर सादगी से मनाया जाता था, लेकिन अब यह सांस्कृतिक मेलों, महिला सशक्तिकरण अभियानों और फैशन शो का भी हिस्सा बन गया है।
🔸 पारंपरिक से आधुनिक
महिलाएं पारंपरिक हरे वस्त्र, गहने, मेंहदी और लोकगीतों के साथ इस दिन को मनाती हैं, लेकिन अब सोशल मीडिया के ज़रिए यह उत्सव शहरों में रह रहीं महिलाओं, युवतियों और यहां तक कि पुरुषों तक भी पहुँचा है।
Online तीज competitions, Zoom पूजा, और सामूहिक कथा-श्रवण अब इस पर्व के नए रूप हैं।
🔸 Digital तीज उत्सव
आजकल Instagram, Facebook और YouTube जैसे प्लेटफॉर्म पर महिलाएं अपनी तीज की तैयारियाँ, श्रृंगार और पूजा साझा करती हैं।
इससे एक वैश्विक समुदाय बन रहा है, जहाँ महिला सशक्तिकरण, परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल रहे हैं।
9.2 भारत से विदेशों तक फैली परंपरा
हरियाली तीज अब केवल भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि प्रवासी भारतीयों के माध्यम से यह अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, दुबई और सिंगापुर तक पहुंच चुकी है।
🌍 प्रवासी भारतीयों की भूमिका
विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के परिवारों ने भारतीय परंपराओं को सहेज कर रखा है। तीज जैसे पर्व इन समुदायों के लिए अपनी जड़ों से जुड़े रहने का माध्यम बनते हैं।
विदेशों में भारतीय समुदाय द्वारा मंदिरों में सामूहिक पूजा, संगीत और नृत्य के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
🕌 सांस्कृतिक केंद्र बन गए हैं मंदिर
विदेशों में स्थित हिन्दू मंदिर अब न केवल पूजा स्थलों के रूप में, बल्कि सांस्कृतिक केंद्र के रूप में काम कर रहे हैं जहाँ हरियाली तीज जैसे त्योहारों को पारंपरिक रीति से मनाया जाता है। इससे नई पीढ़ी भारतीय संस्कृति को सीखती और अपनाती है।
9.3 सामाजिक एकता और महिला जागरूकता
हरियाली तीज केवल धार्मिक त्योहार नहीं, यह सामाजिक एकता, नारी चेतना, और स्त्री-सशक्तिकरण का भी प्रतीक बन चुका है।
👭 महिला सशक्तिकरण का उत्सव
हरियाली तीज महिलाओं को एक-दूसरे से जोड़ता है – यह त्योहार एक Safe Space देता है जहाँ महिलाएं अपनी भावनाओं, जीवन की कहानियों और संघर्षों को साझा कर सकती हैं।
NGOs और महिला संगठनों ने तीज को महिला स्वास्थ्य, शिक्षा और अधिकारों के प्रचार के लिए भी उपयोग करना शुरू किया है।
🤝 सामाजिक समरसता
हरियाली तीज जाति, वर्ग और क्षेत्र की सीमाओं को पार करके महिलाओं को एकजुट करता है। इसमें अमीर-गरीब, शहर-गांव सभी मिलकर एक ही भाव से ईश्वर, प्रकृति और प्रेम की उपासना करते हैं।
📣 जनजागरूकता अभियानों में तीज की भागीदारी
• बालिका शिक्षा,
• महिला स्वास्थ्य,
• घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूकता,
• वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण –
जैसे सामाजिक विषयों को आज तीज के मंच से उठाया जा रहा है।
हरियाली तीज अब सिर्फ ‘श्रृंगार और व्रत’ का पर्व नहीं रहा, यह स्त्रियों की एकजुटता, सांस्कृतिक चेतना और समाज में उनके स्थान को पुनर्परिभाषित करने का माध्यम बन चुका है।
भारत की सीमाओं से निकलकर यह त्योहार अब वैश्विक भारतीय पहचान का हिस्सा है, जो परंपरा और आधुनिकता के सेतु पर मजबूती से खड़ा है।
📚 भाग 10: साहित्य, कला और तीज – सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का उत्सव
🔖 10.1 लोककाव्य और तीज गीत – लोकजीवन की आत्मा
हरियाली तीज न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि एक सांस्कृतिक पर्व भी है, जिसमें लोककाव्य और तीज गीतों की गूंज होती है।
ग्रामीण भारत की गलियों में महिलाएं समूह बनाकर लोकगीत गाती हैं, जो अक्सर शृंगार रस से ओतप्रोत होते हैं। इन गीतों में सावन की बूंदों का सौंदर्य, प्रियतम की प्रतीक्षा, और शिव-पार्वती के प्रेम का आदर्श रूप चित्रित होता है।
- “काजर की कोरी बदरिया छाई…”,
- “सावन आयो रे, झूला पड्यो रे…”
जैसे गीतों में उत्सव, प्रेम और विरह का जीवंत चित्रण मिलता है।
लोकगीतों में स्त्री की पीड़ा, उसके स्वप्न और समाज की भावना का गहरा प्रतिबिंब होता है।
🎨 10.2 चित्रकला और तीज की झांकी – रंगों में रचा पर्व
हरियाली तीज की भावना भारतीय लोकचित्रण में भी गहराई से समाई है।
मधुबनी, पिचवाई, फड़ पेंटिंग और वारली कला जैसी परंपरागत चित्रशैलियों में तीज उत्सव के दृश्य उकेरे जाते हैं:
- महिलाएं झूला झूल रही होती हैं
- मेहंदी रचाई जा रही होती है
- भगवान शिव-पार्वती की पूजा की झांकी बनाई जाती है
मूर्ति कला, घरों की रंगोली, और झांकियों में सजाए गए शिव-पार्वती तीज को एक जीवंत कला महोत्सव का स्वरूप प्रदान करते हैं।
🎬 10.3 फिल्मों और साहित्य में तीज का चित्रण
भारतीय सिनेमा और साहित्य ने भी तीज को सुंदरता से प्रस्तुत किया है।
विशेषकर हिंदी फिल्मों में सावन और तीज गीतों का भावनात्मक महत्व है। उदाहरण:
- फ़िल्मों में सावन के गीतों जैसे –
“सावन का महीना पवन करे शोर…”
“झूला किन डारो रे अमवा की डार पे…”
इनमें तीज की झलक साफ दिखाई देती है।
साहित्यकारों ने भी तीज को महिला-जीवन, प्रकृति और भक्ति से जोड़ते हुए काव्य, उपन्यास और लघु कहानियों में स्थान दिया है।
📌 निष्कर्ष:
हरियाली तीज केवल एक पूजा नहीं, बल्कि कला, गीत, रंग, चित्र और साहित्य की वह विरासत है जो भारतीय संस्कृति को जीवंत बनाती है। इसमें स्त्रीत्व, प्रेम और प्रकृति का समन्वय होता है।
हरियाली तीज केवल एक पर्व नहीं बल्कि नारीत्व, प्रकृति, प्रेम और संस्कृति का उत्सव है। यह परंपरा आज भी हर महिला के जीवन में नई ऊर्जा, नई आस्था और नया उल्लास भरती है। यह दिन शिव-पार्वती के प्रेम को स्मरण कर आत्मबल और वैवाहिक जीवन में सौंदर्य भरने का अवसर देता है।
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