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प्रस्तावना
नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना का महान अवसर है। इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक देवी का स्वरूप एक विशेष शक्ति, गुण और जीवन-दर्शन का संदेश देता है।
नवरात्रि के दूसरे दिन पूजित देवी हैं – माँ ब्रह्मचारिणी। उनका स्वरूप अत्यंत सरल, शांत और तपस्विनी है। वे साधना, संयम और भक्ति की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं। माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक को तपस्या का बल, आत्मसंयम और कठिनाइयों को सहने की शक्ति प्राप्त होती है।
माँ ब्रह्मचारिणी का नाम और अर्थ
“ब्रह्म” का अर्थ है – तप, ज्ञान, ब्रह्मज्ञान और सृष्टि का मूल तत्व।
“चारिणी” का अर्थ है – आचरण करने वाली या पालन करने वाली।
👉 इस प्रकार “ब्रह्मचारिणी” का अर्थ हुआ – वह देवी जो ब्रह्म का आचरण करती हैं, अर्थात तपस्या और संयम में लीन रहने वाली।
यह नाम हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति केवल बाहरी बल में नहीं, बल्कि आत्मबल, तपस्या और धैर्य में छिपी होती है।
जन्म कथा और पौराणिक प्रसंग
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ ब्रह्मचारिणी का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। वे पूर्वजन्म में सती थीं, जिन्होंने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में शिव का अपमान सहन न कर योगाग्नि में अपने प्राण त्याग दिए थे।
पुनर्जन्म में वे हिमालय की पुत्री बनीं और ब्रह्मचारिणी नाम से विख्यात हुईं।
कहते हैं कि बचपन से ही वे तपस्या और संयम में लीन रहती थीं। जब उन्होंने सुना कि वे भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकती हैं, तो उन्होंने कठोर तपस्या प्रारंभ की।
- हजारों वर्षों तक उन्होंने केवल फूल और फल खाए।
- वर्षों तक केवल सूखे पत्तों पर जीवन व्यतीत किया।
- अंततः उन्होंने पत्ते भी त्याग दिए और केवल हवा पर निर्भर रहते हुए कठोर तप किया।
उनकी कठोर साधना से सारा ब्रह्मांड प्रभावित हुआ। अंततः भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि –
👉 “हे ब्रह्मचारिणी, तुम्हारी तपस्या के बल से तुम्हें भगवान शिव पति रूप में प्राप्त होंगे।”
यह कथा हमें सिखाती है कि धैर्य, तपस्या और संयम से ही जीवन के महान लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
स्वरूप और प्रतीक
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत सरल और शांत है, परंतु उनमें अद्भुत तेज झलकता है।
- वे दो भुजाओं वाली देवी हैं।
- दाहिने हाथ में जपमाला धारण करती हैं, जो साधना और ध्यान का प्रतीक है।
- बाएँ हाथ में कमंडलु है, जो त्याग, संयम और तपस्या का प्रतीक है।
- वे सामान्य वस्त्र धारण करती हैं और उनके मुख पर अलौकिक शांति झलकती है।
👉 उनका स्वरूप साधकों को यह संदेश देता है कि भक्ति और साधना में ही सच्चा आनंद है।
नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा विधि
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन होती है। यह दिन साधकों के लिए आत्मसंयम और साधना का प्रतीक है।
पूजन विधि –
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- लकड़ी की चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर माँ की प्रतिमा स्थापित करें।
- कलश स्थापना करें और दीप जलाएँ।
- गंध, पुष्प, अक्षत, चंदन, धूप आदि से माँ का पूजन करें।
- माता को सफेद रंग के पुष्प, चीनी और गुड़ विशेष प्रिय हैं।
- “ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
- माता की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
माँ ब्रह्मचारिणी के मंत्र
बीज मंत्र:
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
ध्यान मंत्र:
दधाना करपद्माभ्यां जपमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
प्रार्थना मंत्र:
तपश्चर्या निरता या तत्त्वमय्या च पार्वती।
ब्रह्मचारिणी देवी प्रसीद मम भाविनी॥
माँ ब्रह्मचारिणी की आरती
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी, मैया जय अम्बे ब्रह्मचारिणी।
तपश्चर्या में लीन तुही, महिमा तेरी अपरम्पारिणी॥
हाथ में जपमाला शोभे, कमंडलु भी हाथ सम्हारिणी।
ज्ञान, वैराग्य की दात्री, भक्तों का उद्धारिणी॥
शंकर मन भावन माता, भक्तों की सुखकारिणी।
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी, मैया जय अम्बे ब्रह्मचारिणी॥
माँ ब्रह्मचारिणी का महत्व
- साधना और संयम की देवी होने के कारण उनकी पूजा से आत्मबल और धैर्य प्राप्त होता है।
- विद्यार्थी और साधकों के लिए यह दिन विशेष फलदायी माना जाता है।
- जीवन की कठिनाइयों और दुखों को सहने की शक्ति मिलती है।
- इनकी कृपा से साधक को ज्ञान, वैराग्य और शांति मिलती है।
- विवाह में आने वाली बाधाएँ भी दूर होती हैं।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय करती है। यह चक्र इच्छाओं और ऊर्जा का केंद्र है।
👉 जब यह संतुलित होता है तो जीवन सुखद और रचनात्मक बनता है।
👉 असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति तनावग्रस्त और अस्थिर हो जाता है।
उनकी साधना से साधक का मन तप और संयम की ओर अग्रसर होता है और जीवन में स्थिरता आती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
माँ ब्रह्मचारिणी की साधना को अगर आधुनिक दृष्टि से देखा जाए तो यह ध्यान और योग साधना का ही रूप है।
- तप और संयम से मनुष्य का मन शांत होता है।
- ध्यान से तनाव और चिंता कम होती है।
- आत्मनियंत्रण से इच्छाशक्ति बढ़ती है।
- संयमित जीवनशैली स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है।
👉 इस प्रकार माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है।
निष्कर्ष
माँ ब्रह्मचारिणी साधना, तप और संयम की प्रतिमूर्ति हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा से साधक को आत्मबल, धैर्य और तपस्या का फल मिलता है।
वे हमें सिखाती हैं कि जीवन की सच्ची सफलता धैर्य और कठोर परिश्रम से ही मिलती है।
उनकी कृपा से साधक हर कठिनाई को सहजता से पार कर लेता है और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करता है।