🌸 माँ कात्यायनी: नवरात्रि की छठी देवी 🌸

1. माँ कात्यायनी का परिचय

नवरात्रि के छठे दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं माँ कात्यायनी। इनका स्वरूप अत्यंत दिव्य और तेजस्वी है।
माँ कात्यायनी को युद्ध की देवी माना जाता है, जो धर्म की रक्षा हेतु दुष्टों का संहार करती हैं। इन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है, क्योंकि इन्होंने महिषासुर राक्षस का वध किया था।

इनकी पूजा विशेषकर युवतियाँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। विवाह में आने वाली सभी बाधाएँ माँ कात्यायनी की कृपा से दूर होती हैं।


2. नाम का अर्थ

  • “कात्यायनी” नाम ऋषि कात्यायन से जुड़ा हुआ है।
  • ऋषि कात्यायन ने घोर तपस्या कर देवी को पुत्री रूप में प्राप्त किया।
  • इसलिए देवी का नाम पड़ा – कात्यायनी

3. माँ कात्यायनी का स्वरूप

  • चार भुजाएँ
  • ऊपर का दायाँ हाथ अभय मुद्रा में
  • ऊपर का बाँया हाथ कमल पुष्प धारण किए हुए
  • नीचे का दायाँ हाथ वरद मुद्रा में
  • नीचे का बाँया हाथ तलवार धारण किए हुए
  • उनका वाहन है सिंह

यह स्वरूप दर्शाता है कि देवी एक ओर करुणामयी माता हैं, तो दूसरी ओर दुष्टों के लिए विनाशिनी शक्ति।


4. पौराणिक कथा

महिषासुर नामक असुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान पाया कि उसे कोई देवता या राक्षस नहीं मार सकेगा। वरदान पाकर वह अत्याचार करने लगा।
देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना पर देवी दुर्गा ने कात्यायनी रूप धारण किया।
महिषासुर से भीषण युद्ध के बाद माँ ने उसका वध किया और देवताओं को स्वर्ग पुनः प्राप्त कराया।
इसी कारण वे “महिषासुरमर्दिनी” के नाम से प्रसिद्ध हुईं।


5. नवरात्रि के छठे दिन की पूजा का महत्व

  • इस दिन पूजा करने से विवाह में आ रही बाधाएँ दूर होती हैं।
  • कुंवारी कन्याएँ मनचाहा वर पाने के लिए माँ कात्यायनी का पूजन करती हैं।
  • माँ कात्यायनी की कृपा से रोग, शोक और भय समाप्त होता है।
  • साधक को आध्यात्मिक शक्ति और ध्यान की सिद्धि प्राप्त होती है।

6. पूजा विधि

  1. सुबह स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें।
  2. माँ कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
  3. धूप, दीप, पुष्प, अक्षत और लाल चंदन से पूजन करें।
  4. प्रसाद के रूप में शहद और मिठाई अर्पित करें।
  5. मंत्र का जप करें और अंत में आरती करें।

7. माँ कात्यायनी के मंत्र

बीज मंत्र:

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

ध्यान मंत्र:

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शारदूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

8. माँ कात्यायनी की आरती

जय कात्यायनी माता, जय महिषासुर मर्दिनी।
तुम बिन शरण किसे जाऊँ, करो कृपा भवानी॥
सिंहवाहिनी माता, करुणामयी जगदम्बा।
भक्तों के दुःख हरनी, दुष्टों का करती संहार॥
जय कात्यायनी माता, जय महिषासुर मर्दिनी॥

9. भक्ति और आध्यात्मिक महत्व

  • माँ कात्यायनी की उपासना से साधक को अनाहत चक्र की सिद्धि प्राप्त होती है।
  • यह साधना मन की शुद्धि और हृदय में प्रेम उत्पन्न करती है।
  • भक्त को साहस, शौर्य और आत्मबल प्राप्त होता है।
  • विवाह योग्य कन्याओं के लिए यह विशेष फलदायी है।

10. वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण

  • माँ कात्यायनी का स्वरूप यह संदेश देता है कि साहस और करुणा दोनों का संतुलन जरूरी है।
  • सिंह पर आरूढ़ होना – आत्मविश्वास और शक्ति का प्रतीक।
  • तलवार – अन्याय और अत्याचार के विनाश का संकेत।
  • विवाह संबंधी पूजा का अर्थ है कि मन को शुद्ध कर सही जीवनसाथी का चयन करना।

11. भक्तों के जीवन में लाभ

  • विवाह में आ रही रुकावटें दूर होती हैं।
  • आत्मबल और साहस की वृद्धि होती है।
  • रोग और भय का नाश होता है।
  • परिवार में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति और ध्यान में सफलता प्राप्त होती है।

12. निष्कर्ष

माँ कात्यायनी का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि धर्म की रक्षा के लिए शक्ति और साहस आवश्यक है।
वे भक्तों को न केवल सांसारिक सुख देती हैं, बल्कि उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर भी आगे बढ़ाती हैं।
नवरात्रि के छठे दिन उनकी उपासना कर जीवन में सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त की जा सकती है।

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