🌸 माँ स्कंदमाता: नवरात्रि की पाँचवीं देवी का स्वरूप, कथा और पूजा महत्व 🌸

1. माँ स्कंदमाता का परिचय

नवरात्रि के पाँचवे दिन की अधिष्ठात्री देवी माँ स्कंदमाता हैं। स्कंदमाता का अर्थ है – भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता। वे देवी दुर्गा का स्वरूप हैं और अपने पुत्र कार्तिकेय को गोद में लेकर सिंह पर सवार रहती हैं। इस कारण उनका नाम “स्कंदमाता” पड़ा।
माँ स्कंदमाता करुणा, ममता, त्याग और शौर्य की प्रतीक मानी जाती हैं। भक्त जब सच्चे मन से इनकी उपासना करता है, तो उसे न केवल भौतिक सुख प्राप्त होता है, बल्कि आध्यात्मिक ऊँचाई भी हासिल होती है।


2. नाम का अर्थ

  • स्कंद – भगवान कार्तिकेय (मुरुगन, सुब्रमण्य, कुमारस्वामी)
  • माता – माँ, जननी

इस प्रकार “स्कंदमाता” का शाब्दिक अर्थ है – “भगवान स्कंद की माता”
भगवान स्कंद देवताओं के सेनापति माने जाते हैं। अतः माँ स्कंदमाता को शक्ति और विजय प्रदान करने वाली माता कहा जाता है।


3. माँ स्कंदमाता का स्वरूप

माँ स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत दिव्य और सौम्य है।

  • वे सिंह पर आरूढ़ रहती हैं।
  • उनके पाँच मुख और चार भुजाएँ होती हैं।
  • दाहिने हाथ में कमल पुष्प, दूसरे हाथ में भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को गोद में धारण किया हुआ।
  • एक हाथ से वे भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और एक हाथ वरद मुद्रा में रहता है।
  • उनका शरीर कमल के समान उज्ज्वल है, इसलिए उन्हें पद्मासना पर विराजित भी बताया गया है।

उनका यह स्वरूप यह दर्शाता है कि – ममता और वीरता का संगम केवल माँ में ही संभव है।


4. पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार, जब असुरों का अत्याचार बढ़ा और देवता असहाय हो गए, तब भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ।
भगवान कार्तिकेय ने ही तारकासुर जैसे राक्षस का वध किया और देवताओं को पुनः स्वर्ग दिलाया।
इस कारण माँ को स्कंदमाता कहा जाने लगा।

एक अन्य कथा के अनुसार –
जब माँ दुर्गा ने पाँचवे रूप में अवतार लिया, तब वे अपने पुत्र स्कंद को गोद में लेकर प्रकट हुईं। उनका यह रूप ममता और शौर्य का अद्भुत संगम है।


5. नवरात्रि के पाँचवे दिन की पूजा का महत्व

नवरात्रि का पाँचवा दिन माँ स्कंदमाता को समर्पित है।

  • इस दिन पूजा करने से भक्त को अद्भुत शांति और सुख प्राप्त होता है।
  • माना जाता है कि माँ स्कंदमाता की कृपा से भक्त को पुत्र सुख और संतान की रक्षा का आशीर्वाद मिलता है।
  • ये माता भक्तों की सभी बाधाओं को दूर कर जीवन को सुखमय बनाती हैं।
  • इनके पूजन से व्यक्ति की मनोवृत्ति शुद्ध होती है और वह आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होता है।

6. पूजा विधि (चरणबद्ध)

  1. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. माँ स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र को कमल पुष्प पर विराजित मानकर स्थापित करें।
  3. सिंदूर, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप से पूजा करें।
  4. पीले और नारंगी रंग के वस्त्र अर्पित करें।
  5. प्रसाद के रूप में केले, गुड़ या मालपुआ अर्पित करें।
  6. “ॐ स्कन्दमात्रे नमः” मंत्र का जप करें।
  7. आरती करके परिवार और स्वयं को प्रसाद वितरित करें।

7. माँ स्कंदमाता के मंत्र

बीज मंत्र:

ॐ स्कन्दमात्रे नमः॥

ध्यान मंत्र:

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

स्तुति:

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

8. माँ स्कंदमाता की आरती

जय स्कंदमाता जय जय माँ।
पुत्र कार्तिक संग विराजे, सिंहवाहिनी माँ॥
कमलासित माँ वंदन करूँ,
पाप संताप मिटे दरस भरूँ॥
भक्तों के कष्ट निवारण करूँ,
सुख-शांति-समृद्धि प्रदान करूँ॥
जय स्कंदमाता जय जय माँ॥

9. भक्ति और आध्यात्मिक महत्व

  • माँ स्कंदमाता भक्तों की इच्छाएँ पूर्ण करती हैं
  • संतानहीन दंपत्ति यदि श्रद्धा से पूजा करें तो उन्हें संतान प्राप्त होती है।
  • आध्यात्मिक साधक को हृदय चक्र (अनाहत चक्र) की सिद्धि प्राप्त होती है।
  • इनके ध्यान और उपासना से साधक को निर्मल बुद्धि और विवेक प्राप्त होता है।

10. वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण

  • माँ स्कंदमाता का स्वरूप यह दर्शाता है कि माँ केवल पालनहार ही नहीं बल्कि रक्षक भी हैं।
  • सिंह पर आरूढ़ होना – साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक।
  • स्कंद को गोद में लेना – ममता और संतानों की सुरक्षा का प्रतीक।
  • दर्शन से यह संदेश मिलता है कि परिवार और समाज में संतुलन तभी संभव है जब शक्ति और करुणा साथ हों।

11. भक्तों के जीवन में लाभ

माँ स्कंदमाता की उपासना से:

  • संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  • परिवार में प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।
  • शत्रु और रोग बाधाएँ दूर होती हैं।
  • साधक को आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त होती है।
  • भक्त के जीवन में धन, वैभव और समृद्धि आती है।

12. निष्कर्ष

माँ स्कंदमाता का स्वरूप हमें यह शिक्षा देता है कि –
“ममता और वीरता दोनों साथ चल सकते हैं।”
वे भक्तों को न केवल पारिवारिक सुख देती हैं, बल्कि उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर भी आगे बढ़ाती हैं।
नवरात्रि के पाँचवे दिन इनकी उपासना करने से भक्त के जीवन से दुख, संकट और भय का नाश होता है और जीवन सुख-शांति से भर जाता है।

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