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भूमिका
भारतीय संस्कृति में तिलक केवल एक धार्मिक चिह्न नहीं, बल्कि आस्था, ऊर्जा और पहचान का प्रतीक है। जब भी हम मंदिर में प्रवेश करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं या कोई मंगल कार्य आरंभ करते हैं, माथे पर तिलक लगाना एक परंपरा बन गई है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
तिलक का स्थान, उसका रंग, प्रकार और यहां तक कि उसे लगाने की उंगली भी अलग-अलग परिणाम देती है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि तिलक क्यों लगाया जाता है, इसके प्रकार क्या हैं, किस उंगली से तिलक लगाना चाहिए, और इसके पीछे छिपा वैज्ञानिक रहस्य क्या है।
1. तिलक क्या है?
तिलक संस्कृत शब्द ‘तिल’ से बना है, जिसका अर्थ है छोटा बिंदु या रेखा। शास्त्रों में इसे ‘पवित्र चिह्न’ कहा गया है जो व्यक्ति के आध्यात्मिक केंद्र को जागृत करता है। तिलक प्रायः भौहों के बीच, यानी आज्ञा चक्र पर लगाया जाता है। यह स्थान सात चक्रों में से एक है और मनुष्य की एकाग्रता, ध्यान और अंतर्ज्ञान को नियंत्रित करता है।
2. तिलक का धार्मिक महत्व
(a) ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करना
तिलक लगाने से माना जाता है कि भगवान का आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ रहता है। पूजा के बाद तिलक लगाकर भक्त अपनी भक्ति को पूर्ण करते हैं।
(b) पहचान का प्रतीक
विभिन्न संप्रदायों में तिलक की आकृति अलग होती है –
- वैष्णव संप्रदाय – ऊर्ध्वपुंड तिलक (ऊपर की ओर रेखा)
- शैव संप्रदाय – त्रिपुंड तिलक (तीन क्षैतिज रेखाएँ)
- शक्त संप्रदाय – सिंदूर/कुमकुम तिलक
(c) शुभता और मंगल
शादी, व्रत, त्योहार, हवन या किसी भी शुभ कार्य से पहले तिलक लगाना मंगलसूचक माना गया है।
3. तिलक का आध्यात्मिक महत्व
- तिलक आज्ञा चक्र को सक्रिय करता है, जिससे ध्यान शक्ति और अंतर्ज्ञान बढ़ता है।
- यह व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है।
- तिलक लगाने से आत्मविश्वास और मानसिक शांति मिलती है।
4. तिलक लगाने के पीछे वैज्ञानिक कारण
- भौहों के बीच की जगह (ब्रूमध्य) में कई नसें और नसों के सिरे होते हैं।
- तिलक (विशेषकर चंदन) लगाने से ठंडक मिलती है और मस्तिष्क शांत रहता है।
- इस स्थान पर हल्का दबाव पड़ने से तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) सक्रिय होता है और तनाव कम होता है।
5. तिलक के रंग और उनका महत्व
चंदन (पीला/सफेद)
- शांति, ठंडक और करुणा का प्रतीक।
- विष्णु और कृष्ण भक्त इसे लगाते हैं।
कुमकुम / सिंदूर (लाल)
- ऊर्जा, शक्ति और मंगल का प्रतीक।
- देवी पूजा और वैवाहिक मांगलिक कार्यों में उपयोग।
भस्म / राख (सफेद-धूसर)
- विरक्ति, तपस्या और शिव भक्ति का प्रतीक।
- शिव भक्त भस्म का त्रिपुंड तिलक लगाते हैं।
हल्दी (पीला)
- उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक।
- विवाह और विशेष पूजन में प्रयोग।
अष्टगंध (आठ सुगंधित पदार्थों का मिश्रण)
- विशेष देवपूजन और त्योहारों में।
- यह मन को प्रसन्न और एकाग्र करता है।
6 माथे पर तिलक की आकृतियाँ (Shape of Tilak) और उनका महत्व
हिंदू धर्म में तिलक की आकृतियाँ संप्रदाय, देवता और पूजा की विधि के अनुसार अलग‑अलग होती हैं। हर आकार का अपना धार्मिक और आध्यात्मिक अर्थ है। नीचे मुख्य तिलक आकृतियों का विवरण दिया गया है:
1. ऊर्ध्वपुंड तिलक (Urdhva Pundra) – ऊर्ध्व रेखाएँ
- आकृति: माथे पर दो सीधी ऊर्ध्व रेखाएँ, बीच में कुमकुम या गेरुए का बिंदु।
- संप्रदाय: वैष्णव भक्त (राम, कृष्ण, विष्णु)
- प्रतीक: भगवान विष्णु के चरणचिन्ह और भक्ति का भाव।
- रंग: चंदन या गेरुआ + कुमकुम।
2. त्रिपुंड तिलक (Tripundra) – तीन क्षैतिज रेखाएँ
- आकृति: तीन सफेद क्षैतिज रेखाएँ, बीच में लाल/काले बिंदु के साथ।
- संप्रदाय: शैव भक्त (भगवान शिव के अनुयायी)
- प्रतीक: सत्व, रज और तम गुणों का संतुलन; भस्म से निर्मित।
3. गोल बिंदु तिलक (Bindi / Dot Tilak)
- आकृति: माथे के मध्य में छोटा गोल बिंदु।
- संप्रदाय: देवी पूजा, गणेश पूजा
- प्रतीक: शक्ति, मंगल और एकाग्रता।
4. वी-आकार तिलक (V-shaped Tilak)
- आकृति: माथे पर उल्टा V आकार, बीच में लाल रेखा।
- संप्रदाय: श्रीवैष्णव और कृष्ण भक्तों में प्रसिद्ध।
- प्रतीक: श्री और विष्णु का मिलन (लक्ष्मी-नारायण)।
5. लंबी रेखा (Vertical Line) तिलक
- आकृति: सीधी लंबी रेखा, कभी-कभी उसके ऊपर बिंदु।
- संप्रदाय: शिव, हनुमान या विष्णु भक्तों में देखा जाता है।
- प्रतीक: ऊर्जा और उन्नति का प्रतीक।
6. त्रिशूल आकार तिलक (Trishul Tilak)
- आकृति: तीन नुकीली रेखाओं वाला त्रिशूल आकार।
- संप्रदाय: शिव और दुर्गा भक्त।
- प्रतीक: शक्ति, साहस और सुरक्षा।
7. चक्र या अर्धचंद्राकार तिलक (Circular/Arc Tilak)
- आकृति: चक्र या अर्धचंद्र के रूप में।
- संप्रदाय: कृष्ण भक्त (विशेषकर रासलीला और ब्रज क्षेत्र में)।
- प्रतीक: सुदर्शन चक्र और पूर्णता का भाव।
7. किस उंगली से तिलक लगाना चाहिए?
अनामिका (Ring Finger) – श्रेष्ठतम
- इसे सूर्य उंगली कहते हैं।
- शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति देती है।
- अधिकतर पूजा और तिलक में इसका उपयोग।
अंगूठा (Thumb)
- शक्ति और साहस का प्रतीक।
- हवन, यज्ञ और संकल्प के समय श्रेष्ठ।
मध्यमा (Middle Finger)
- शनि ग्रह से जुड़ी, गंभीरता और स्थिरता देती है।
- विशेष व्रत या तांत्रिक क्रियाओं में उपयोग।
कनिष्ठा (Little Finger)
- बुध ग्रह से जुड़ी, बुद्धि और संचार को बढ़ाती है।
तर्जनी (Index Finger)
- आदेश और संकेत की उंगली।
- पूजा में इसका प्रयोग वर्जित माना गया है।
8. तिलक लगाने का सही तरीका
- पूजा या स्नान के बाद स्वच्छ हाथों से तिलक लगाएं।
- तिलक हमेशा ऊपर की ओर लगाना चाहिए (ऊर्ध्वमुख)।
- तिलक लगाते समय मन ही मन भगवान का नाम लें या मंत्र जपें।
- चंदन, कुमकुम, भस्म शुद्ध और पवित्र होनी चाहिए।
9. तिलक का ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व
- प्राचीन भारत में योद्धा युद्ध से पहले विजय तिलक लगाते थे।
- गुरुकुल में शिक्षा पूरी होने पर गुरु शिष्य को तिलक लगाते थे।
- आज भी शादी-ब्याह में वर-वधू का स्वागत तिलक से होता है।
10. तिलक और ज्योतिषीय संबंध
- तिलक का रंग ग्रहों से जुड़ा माना गया है:
- पीला – बृहस्पति
- लाल – मंगल
- सफेद – चंद्र
- भस्म – शनि/शिव
- उचित तिलक लगाने से ग्रहदोष भी कम होते हैं।
11. आधुनिक जीवन में तिलक का महत्व
आज भले ही तिलक केवल परंपरा लगता हो, लेकिन इसका मानसिक और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह हमें हमारी जड़ों, हमारी संस्कृति और हमारी आध्यात्मिक चेतना से जोड़ता है।
निष्कर्ष
माथे पर तिलक लगाना केवल धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि यह हमारे मस्तिष्क और मन को संतुलित करने का एक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक उपाय है। तिलक के प्रकार, रंग और उंगली का चयन भी इसका प्रभाव बदल देता है। इसलिए अगली बार जब आप पूजा करें, तिलक लगाएं और इसके पीछे छिपे दिव्य रहस्यों को याद करें।