शीतला सातम: माता शीतला की पूजा और ठंडे भोजन का अनोखा पर्व

भूमिका

भारत विविध परंपराओं का देश है। यहाँ हर पर्व का एक गहरा धार्मिक और सामाजिक महत्व है। इन्हीं पर्वों में से एक है शीतला सातम, जिसे मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर माता शीतला को समर्पित है, जिन्हें चेचक और संक्रामक रोगों से रक्षा करने वाली देवी माना जाता है।


शीतला सातम कब और क्यों मनाई जाती है?

  • शीतला सातम का पर्व श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को आता है।
  • मान्यता है कि इस दिन माता शीतला की पूजा करने से बच्चे और परिवार संक्रमण, बुखार और त्वचा रोगों से सुरक्षित रहते हैं।
  • इस दिन को कुछ जगहों पर ‘बासोड़ा’ भी कहा जाता है।

शीतला सातम की विशेष परंपरा: बासी भोजन का सेवन

  • शीतला सातम पर अग्नि का प्रयोग वर्जित होता है।
  • इस दिन एक दिन पहले बना हुआ ठंडा भोजन (जैसे पूड़ी, हलवा, खीर, दाल, चावल) खाया जाता है।
  • मान्यता है कि माता शीतला ठंडक और शांति की देवी हैं, इसलिए इस दिन गर्म चीजें या ताजा पका हुआ भोजन नहीं बनाया जाता।

माता शीतला की पूजा विधि

  1. स्नान करके व्रत करने वाले लोग स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं।
  2. माता शीतला की प्रतिमा या चित्र के सामने जल, हल्दी, चावल, रोली, और ठंडा भोजन चढ़ाया जाता है।
  3. व्रत कथा सुनी जाती है और बच्चों की आरोग्यता व परिवार की समृद्धि की कामना की जाती है।
  4. पूजा के बाद घर के सभी सदस्य बासी भोजन का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

धार्मिक मान्यता

  • माता शीतला को चेचक और संक्रामक बीमारियों की देवी माना गया है।
  • पुराणों में वर्णन है कि माता शीतला का स्मरण करने से महामारी और रोग दूर रहते हैं।
  • इस दिन माता की पूजा करने से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को विशेष लाभ मिलता है।

वैज्ञानिक कारण

  • बरसात के मौसम में संक्रमण और फूड पॉइजनिंग का खतरा अधिक होता है।
  • इस पर्व के माध्यम से लोगों को यह संदेश दिया गया है कि बरसात में हल्का और साधारण भोजन करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
  • एक दिन पहले बने भोजन में तामसिकता कम होती है और यह शरीर को ठंडक देता है।

आधुनिक महत्व

  • आज के समय में भी ग्रामीण क्षेत्रों में यह पर्व पूरी श्रद्धा से मनाया जाता है।
  • यह पर्व हमें स्वास्थ्य, स्वच्छता और पारिवारिक एकता का संदेश देता है।
  • बच्चों को भी इससे हमारी लोक परंपराओं का ज्ञान होता है।

निष्कर्ष

शीतला सातम सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारी लोक संस्कृति और स्वास्थ्य परंपराओं का प्रतीक है। माता शीतला की पूजा से न केवल रोगों से मुक्ति की कामना की जाती है, बल्कि यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन जीने में ही सुख और शांति है।

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