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श्रावण मास की बड़ी सातम (शीतला सातम) – महत्व, कथा और वैज्ञानिक कारण
परिचय
श्रावण मास हिंदू पंचांग के सबसे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। इस माह में कई विशेष पर्व और व्रत आते हैं, जिनमें से एक है श्रावण मास की बड़ी सातम, जिसे शीतला सातम या बड़ी सातमी भी कहा जाता है। यह पर्व विशेषकर गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है।
यह पर्व शीतला माता को समर्पित है, जिन्हें रोगों से बचाने वाली देवी माना जाता है। बड़ी सातम का विशेष महत्व है क्योंकि यह वर्षा ऋतु में आने वाला एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक आस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य और पर्यावरण से भी जुड़ा है।
तारीख और समय
- बड़ी सातम श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है।
- इसे “बड़ी सातम” इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके लगभग एक महीने बाद भाद्रपद मास में “छोटी सातम” आती है।
धार्मिक मान्यता
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शीतला माता रोगों की देवी हैं जो विशेषकर चेचक (Smallpox) और अन्य संक्रामक बीमारियों से रक्षा करती हैं।
मान्यता है कि इस दिन माता की पूजा करने और उनके नियमों का पालन करने से घर में बीमारियाँ नहीं आतीं, विशेषकर बच्चों को रोगों से बचाव मिलता है।
विशेष परंपराएं
1. चूल्हा न जलाना
बड़ी सातम पर चूल्हा नहीं जलाया जाता।
सप्तमी से एक दिन पहले यानी षष्ठी तिथि को ही सभी भोजन बना लिया जाता है और सप्तमी के दिन ठंडा भोजन (बासीया) खाया जाता है।
2. विशेष भोजन
इस दिन बनने वाले बासिये भोजन में शामिल होते हैं:
- पूरी
- लापसी (घी और गुड़ से बनी मीठी खिचड़ी)
- पापड़
- सेव
- भजिया
- मिठाई
- ठंडा दूध या छाछ
3. शीतला माता की पूजा
- सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शीतला माता की मूर्ति या चित्र को हल्दी, चावल, गंध, फूल, नारियल और लाल चुनरी से सजाएं।
- बासी भोजन का भोग माता को लगाएं।
- “शीतलाष्टक” या “शीतला माता व्रत कथा” का पाठ करें।
शीतला माता व्रत कथा
प्राचीन कथा के अनुसार, एक समय एक गांव में लोग माता शीतला की पूजा नहीं करते थे।
गांव में एक महिला थी जो हर साल सातम के दिन माता की पूजा और बासी भोजन का नियम निभाती थी। एक वर्ष, गांव में भयंकर चेचक फैल गई और कई लोग बीमार हो गए, लेकिन उस महिला का परिवार स्वस्थ रहा।
लोगों को समझ आ गया कि यह शीतला माता का आशीर्वाद है। तभी से गांव के लोग सातम के दिन माता की पूजा और नियम का पालन करने लगे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- संक्रमण से बचाव: वर्षा ऋतु में वातावरण में बैक्टीरिया और वायरस ज्यादा फैलते हैं। पहले लोग मानते थे कि इस समय चूल्हा न जलाकर और पहले से बना भोजन खाकर शरीर को मौसम के अनुकूल बनाया जा सकता है।
- स्वच्छता का महत्व: पूजा के समय साफ-सफाई पर जोर दिया जाता है, जो संक्रामक बीमारियों से बचने में मदद करता है।
- सामाजिक एकता: पूरा गांव या मोहल्ला एक साथ बासी भोजन करता और पूजा में शामिल होता, जिससे आपसी भाईचारा बढ़ता था।
बड़ी सातम का महत्व
- रोगों से रक्षा
- बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा
- पर्यावरण और स्वच्छता का संदेश
- धार्मिक और सामाजिक एकता
- पारंपरिक खानपान और संस्कृति का संरक्षण
निष्कर्ष
श्रावण मास की बड़ी सातम केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह स्वास्थ्य, स्वच्छता और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारे पूर्वजों की परंपराओं में वैज्ञानिक सोच भी छिपी हुई थी।
आज के समय में, भले ही जीवनशैली बदल गई हो, लेकिन बड़ी सातम का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व हमेशा बना रहेगा।