श्रावण माह: परिचय

श्रावण माह (Sawan Mahina) की पूरी और गहन जानकारी दी गई है। यह जानकारी धार्मिक, पौराणिक, ज्योतिषीय, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से श्रावण माह को समझने के लिए पर्याप्त है।

  • काल: यह महीना हिंदू पंचांग के अनुसार चतुर्मास का दूसरा महीना होता है।
  • नाम का कारण: इस माह में श्रवण नक्षत्र की अधिकता होती है, इसी कारण इसे श्रावण कहा गया।
  • ग्रेगोरियन कैलेंडर: सामान्यतः जुलाई-अगस्त में आता है।
  • मौसम: यह पूर्णतः वर्षा ऋतु का समय है – नदियाँ, खेत, वनस्पति सब हरे-भरे हो जाते हैं।

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पौराणिक महत्व

  • शिव का प्रिय महीना: मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने गले में धारण किया था और उस विष के प्रभाव को कम करने हेतु देवताओं ने श्रावण मास में जलाभिषेक किया।
  • कृष्ण-बलराम जन्म: इस माह के अंत में भाद्रपद का आरंभ होता है, जिससे जन्माष्टमी की तैयारी शुरू होती है।
  • पार्वती तपस्या: माता पार्वती ने शिव विवाह हेतु इसी माह में कठोर तप किया।
  • भगवान विष्णु का शयन काल: श्रावण में चातुर्मास के दौरान विष्णु शेषनाग पर क्षीरसागर में शयन करते हैं।

ज्योतिषीय महत्व

  • सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में प्रमुख गोचर करता है।
  • यह महीना जल तत्व प्रधान है – जल की शुद्धि और जल दान का महत्व बढ़ता है।
  • रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और सोमवार व्रत विशेष फलदायी होते हैं।

श्रावण माह में प्रमुख पर्व एवं व्रत

1. श्रावण सोमवार व्रत

  • हर सोमवार को भगवान शिव का व्रत रखा जाता है।
  • महिलाएँ यह व्रत पति की दीर्घायु और कुंवारी कन्याएँ उत्तम वर प्राप्ति के लिए करती हैं।

2. नाग पंचमी

  • सर्प देवता की पूजा कर कालसर्प दोष निवारण और संतान सुख की कामना की जाती है।

3. हरियाली तीज

  • सौभाग्य और वैवाहिक सुख हेतु महिलाओं का विशेष पर्व।

4. कजली तीज

  • उत्तर भारत में मनाया जाने वाला पर्व – राधा-कृष्ण की भक्ति से जुड़ा।

5. पूर्णिमा और अमावस्या

  • गुरु पूर्णिमा, श्रावण अमावस्या और रक्षा बंधन इस माह के महत्वपूर्ण पर्व हैं।

पूजा-पद्धति

  • प्रतिदिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, भांग, धतूरा अर्पित करें।
  • महामृत्युंजय मंत्र या रुद्राष्टक का पाठ करें।
  • सोमवार को व्रत करके सूर्यास्त के बाद शिवालय में दीपक जलाएं।

श्रावण माह के प्रमुख पर्वों का विस्तृत विवरण

1. नाग पंचमी (श्रावण कृष्ण पंचमी)

पौराणिक महत्व

  • नाग पंचमी का संबंध भगवान शिव के गले में विराजमान वासुकी नाग से है।
  • महाभारत में भी नाग पूजा का उल्लेख है – अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की रक्षा हेतु नागों को प्रसन्न किया जाता था।
  • यह दिन कालसर्प दोष निवारण और संतान सुख के लिए विशेष माना जाता है।

पूजा-विधि

  1. प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  2. घर या मंदिर में नाग देवता की प्रतिमा को दूध, गंगाजल और केसर से स्नान कराएँ।
  3. दूर्वा, चंदन और फूल अर्पित करें।
  4. “ॐ नागदेवाय नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।
  5. दूध, चावल और लड्डू का भोग लगाएँ और ब्राह्मण को दान करें।

वैज्ञानिक/ज्योतिषीय दृष्टिकोण

  • बरसात के मौसम में सांपों की गतिविधि बढ़ जाती है; इस दिन सांपों को मारना वर्जित है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है।
  • चंद्र दोष और राहु-केतु से जुड़ी नकारात्मक ऊर्जा को संतुलित करने के लिए नाग पूजा की जाती है।

2. हरतालिका तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया)

पौराणिक महत्व

  • यह पर्व माता पार्वती के कठोर तप का प्रतीक है, जिसे उन्होंने शिव विवाह हेतु किया था।
  • विशेष रूप से विवाहित और अविवाहित स्त्रियाँ यह व्रत रखती हैं।

पूजा-विधि

  1. निर्जला उपवास करें – फलाहार भी न लें।
  2. मिट्टी या लकड़ी की शिव-पार्वती प्रतिमा बनाकर सजाएँ।
  3. 16 श्रृंगार करें और पार्वती माता का पूजन करें।
  4. रात्रि जागरण और शिव विवाह की कथा का पाठ करें।
  5. अगले दिन व्रत का पारण फलाहार से करें।

वैज्ञानिक/ज्योतिषीय दृष्टिकोण

  • यह व्रत चंद्रमा और शुक्र ग्रह के संतुलन के लिए किया जाता है।
  • मानसून में उपवास शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करता है।

3. श्रावण अमावस्या

पौराणिक महत्व

  • यह पितरों के तर्पण और श्राद्ध का प्रमुख दिन है।
  • मान्यता है कि इस दिन पितृलोक के द्वार खुलते हैं और पूर्वज अपने वंशजों का आशीर्वाद देने आते हैं।

पूजा-विधि

  1. सूर्योदय से पहले पवित्र स्नान करें।
  2. कुश घास, तिल और जल से पितरों का तर्पण करें।
  3. शिवलिंग पर जलाभिषेक और महामृत्युंजय जप करें।
  4. गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें।

वैज्ञानिक/ज्योतिषीय दृष्टिकोण

  • यह दिन सूर्य-चंद्र संगम का होता है – ऊर्जा का संतुलन और पूर्वजों की स्मृति का समय।
  • मानसून के बीच दान और तर्पण से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

4. रक्षाबंधन (श्रावण पूर्णिमा)

पौराणिक महत्व

  • द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को राखी बाँधी थी; उन्होंने रक्षा का वचन दिया।
  • बलि राजा और विष्णु की कथा भी इससे जुड़ी है।
  • भाई-बहन के प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक पर्व।

पूजा-विधि

  1. राखी थाली सजाएँ – दीप, अक्षत, रोली, मिठाई।
  2. भाई के माथे पर तिलक करें, राखी बाँधें और मिठाई खिलाएँ।
  3. भाई बहन को उपहार देकर रक्षा का वचन दे।

वैज्ञानिक/ज्योतिषीय दृष्टिकोण

  • रक्षासूत्र का लाल रंग मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है – यह नकारात्मक ऊर्जा को रोकता है।
  • पूर्णिमा का दिन मानसिक शांति और रिश्तों के नवनीकरण के लिए श्रेष्ठ है।

5. श्रावण सोमवार व्रत

पौराणिक महत्व

  • भगवान शिव का प्रिय दिन – सोम का संबंध चंद्र से है और श्रावण में शिव जलाभिषेक विशेष फलदायी है।
  • पार्वती ने शिव विवाह हेतु श्रावण सोमवार का व्रत रखा था।

पूजा-विधि

  1. प्रातः स्नान कर सफेद वस्त्र धारण करें।
  2. शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा और भांग अर्पित करें।
  3. “ॐ नमः शिवाय” या महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
  4. शिव कथा सुनें और व्रत का पारण करें।

वैज्ञानिक/ज्योतिषीय दृष्टिकोण

  • सोमवार का दिन मन और जल तत्व का प्रतीक है – मानसून में मन की शांति हेतु श्रेष्ठ।
  • बेलपत्र के औषधीय गुण शरीर को शीतल रखते हैं।

श्रावण माह के 30 दिनों का संक्षिप्त विवरण

  • कृष्ण पक्ष: पितृ पूजन, नाग पंचमी, तर्पण, अमावस्या साधनाएँ।
  • शुक्ल पक्ष: हरियाली तीज, सोमवार व्रत, रक्षा बंधन, रक्षासूत्र धारण।

श्रावण माह 30 दिन कैलेंडर

दिनपक्षतिथिपर्व / व्रत / पूजन
1कृष्णप्रतिपदाश्रावण माह प्रारंभ, शिव पूजन आरंभ
2कृष्णद्वितीयापितृ तर्पण, जल दान
3कृष्णतृतीयाशिव-पार्वती पूजन, सौभाग्य व्रत
4कृष्णचतुर्थीगणेश पूजन, संकट निवारण व्रत
5कृष्णपंचमीनाग पंचमी – सर्प पूजन, चंद्र दोष निवारण
6कृष्णषष्ठीकात्यायनी देवी पूजा, संतान सुख हेतु व्रत
7कृष्णसप्तमीभाद्र सप्तमी स्नान, सूर्य अर्घ्य
8कृष्णअष्टमीश्रावण शिवरात्रि, रात्रि जागरण
9कृष्णनवमीशिव भजन, ब्राह्मण भोज
10कृष्णदशमीतर्पण और दान
11कृष्णएकादशीकामिका एकादशी व्रत
12कृष्णद्वादशीपारण, विष्णु पूजन
13कृष्णत्रयोदशीसंतान सुख हेतु संकल्प पूजा
14कृष्णचतुर्दशीमहामृत्युंजय जाप, जलाभिषेक
15अमावस्याश्रावण अमावस्या – पितृ पूजन, कालसर्प निवारण साधना
16शुक्लप्रतिपदाहरियाली पूजा, वृक्षारोपण
17शुक्लद्वितीयाहरतालिका तीज की तैयारी
18शुक्लतृतीयाहरतालिका तीज – स्त्रियों का विशेष व्रत
19शुक्लचतुर्थीगणेश पूजन
20शुक्लपंचमीरक्षाबंधन की तैयारी
21शुक्लषष्ठीकजली तीज
22शुक्लसप्तमीदुर्गा पूजन
23शुक्लअष्टमीगोपाल पूजा, भक्ति गीत
24शुक्लनवमीशिव-पार्वती कथा वाचन
25शुक्लदशमीभक्ति सत्संग
26शुक्लएकादशीश्रावण पुत्रदा एकादशी
27शुक्लद्वादशीविष्णु पूजन
28शुक्लत्रयोदशीरुद्राभिषेक
29शुक्लचतुर्दशीअनंत साधना
30पूर्णिमारक्षा बंधन – श्रावण पूर्णिमा, सत्यनारायण कथा

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • वर्षा ऋतु में शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है।
  • व्रत और फलाहार शरीर को शुद्ध रखते हैं।
  • बेलपत्र और गंगाजल में जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी हैं।

श्रावण माह में क्या करें और क्या न करें

करें:

  • शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाएँ।
  • सोमवार व्रत और रुद्राभिषेक करें।
  • सत्संग और कीर्तन में भाग लें।
  • दान, विशेषकर जल और वस्त्र का दान करें।

न करें:

  • मांस, मदिरा और तामसिक भोजन।
  • झूठ बोलना, क्रोध और हिंसा।

श्रावण माह की 4 विशेष पूर्णिमाएँ और अमावस्या

श्रावण मास के वैज्ञानिक और ज्योतिषीय रहस्य

1. क्यों श्रावण में व्रत स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं?

वैज्ञानिक कारण

  • पाचन तंत्र की स्थिति: मानसून में आर्द्रता और नमी बढ़ने के कारण शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। भारी और तैलीय भोजन रोग पैदा कर सकता है।
  • डिटॉक्सिफिकेशन: व्रत के दौरान हल्का भोजन (फल, दूध, साबूदाना) लेने से शरीर में जमा टॉक्सिन बाहर निकलते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  • हाइड्रेशन बैलेंस: दूध, फल और जल आधारित व्रत भोजन शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखता है।
  • सकारात्मक मानसिक प्रभाव: व्रत के दौरान ध्यान और जप मन को स्थिर करते हैं, जिससे डोपामिन और सेरोटोनिन हार्मोन सक्रिय होकर मानसिक शांति देते हैं।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

  • व्रत से पित्त दोष संतुलित होता है (जो बरसात में बढ़ जाता है)।
  • बेलपत्र, भांग, गंगाजल जैसे पूजा तत्वों में प्राकृतिक एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं।

2. मानसून का पंचतत्व शुद्धिकरण से संबंध

पंचतत्व और श्रावण

हिन्दू दर्शन में शरीर पाँच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश से बना है। मानसून में विशेष रूप से जल तत्व का प्रभाव बढ़ जाता है, जिससे अन्य तत्व असंतुलित हो सकते हैं।

  • जल तत्व (चंद्र): मानसून में अधिक सक्रिय, मन और भावनाओं को प्रभावित करता है।
  • पृथ्वी तत्व: बारिश से भूमि की नमी बढ़ती है, इससे पाचन और स्थिरता प्रभावित होती है।
  • अग्नि तत्व: पाचन शक्ति कम होती है, इसलिए उपवास से अग्नि शुद्ध होती है।
  • वायु और आकाश तत्व: व्रत और ध्यान से संतुलन में आते हैं, जिससे मानसिक स्थिरता बढ़ती है।

श्रावण में शुद्धिकरण

  • शिव अभिषेक में प्रयुक्त जल और दूध पंचतत्व को शीतलता और शुद्धि प्रदान करते हैं।
  • रुद्राक्ष धारण से विद्युत और चुंबकीय ऊर्जा संतुलित होती है।
  • वर्षा ऋतु में नंगे पैर चलकर धरती से संपर्क (Earthing) शरीर की ऊर्जा को स्थिर करता है।

3. सोम और चंद्र के जल तत्व का प्रभाव

चंद्र का प्रभाव

  • चंद्रमा शरीर के जल तत्व और मानसिक तरंगों को नियंत्रित करता है।
  • पूर्णिमा और अमावस्या पर ज्वार-भाटा जैसे जल परिवर्तन शरीर में भी असर डालते हैं (मूड, ऊर्जा, नींद)।

श्रावण में सोम ऊर्जा

  • सोम का संबंध चंद्रमा और अमृत तत्व से है।
  • शिव के मस्तक पर चंद्रमा का वास – श्रावण में सोम-ऊर्जा अधिक सक्रिय रहती है।
  • सोमवार (Somwar) का उपवास मन को शीतलता और मानसिक स्पष्टता देता है।

पूजा का वैज्ञानिक पक्ष

  • शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाने से जल तत्व का संतुलन होता है।
  • बेलपत्र का त्रिदल (तीन पत्ते) – वात, पित्त और कफ संतुलन का प्रतीक है।

श्रावण माह का निष्कर्ष

श्रावण महीना केवल शिव भक्ति का समय नहीं, बल्कि यह आत्मसंयम, सेवा, भक्ति और शुद्धता का उत्सव है। इस माह के व्रत और साधनाएँ जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति प्रदान करती हैं।

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