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प्रस्तावना: क्यों श्रीकृष्ण को पूर्णावतार कहा गया?
सनातन धर्म में भगवान विष्णु के कई अवतार माने जाते हैं – मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण और बुद्ध। इनमें से हर अवतार ने समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए लीलाएँ रचीं। परंतु श्रीकृष्ण को “पूर्णावतार” कहा गया है, क्योंकि उनमें संपूर्ण 16 कलाएँ (षोडश कला) विद्यमान थीं।
जब भी हम कृष्ण को देखते हैं – बालक के रूप में माखन चोरी करते हुए, रासलीला में बांसुरी बजाते हुए, या महाभारत के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए – हर जगह उनकी दिव्यता और पूर्णता प्रकट होती है। यही पूर्णता उनकी 16 कलाओं के कारण है।
कला शब्द का अर्थ
‘कला’ का अर्थ केवल चित्रकारी या संगीत नहीं है। संस्कृत में कला का अर्थ है –
- दिव्य शक्ति
- आत्मा की पूर्णता
- चेतना की उच्च अवस्था
- परमात्मा से जुड़ाव का गुण
वेदों में कहा गया है कि पूर्ण चंद्रमा में 16 कलाएँ होती हैं। जब चंद्रमा घटता-बढ़ता है तो उसकी कलाएँ घटती-बढ़ती हैं। उसी तरह कृष्ण पूर्णचंद्र समान हैं – उनमें सभी कलाएँ एक साथ प्रकट थीं।
16 कलाएँ क्या हैं?
शास्त्रों में विभिन्न प्रकार से इन कलाओं का वर्णन मिलता है, परंतु broadly 16 कलाएँ हैं –
- ज्ञान (Divine Knowledge)
- ऐश्वर्य (Opulence)
- शक्ति (Power/Energy)
- बल (Strength)
- वीर्य (Valour)
- तेज (Radiance)
- वीत-राग (Detachment from Desires)
- करुणा (Compassion)
- माधुर्य (Sweetness/Charm)
- कीर्तन (Music/Devotional Singing)
- लीला (Playfulness)
- धैर्य (Patience)
- संयम (Self-Control)
- क्षमा (Forgiveness)
- सत्य (Truthfulness)
- पूर्णता (Integration of All Qualities)
पूर्णावतार और अंशावतार का अंतर
- अंशावतार – जब भगवान अपनी शक्ति का केवल एक अंश लेकर अवतरित होते हैं।
- पूर्णावतार – जब भगवान अपनी संपूर्ण कलाओं सहित अवतरित होते हैं।
- रामावतार में 12 कलाएँ थीं, परंतु कृष्णावतार में सभी 16 कलाएँ थीं।
श्रीकृष्ण की 16 कलाओं की विशेषता
हर कला का अपना महत्व है –
- ज्ञान कला – गीता का उपदेश, धर्म का विवेक
- बल कला – कालिय मर्दन, गोवर्धन धारण
- माधुर्य कला – रासलीला, गोपियों का प्रेम
- क्षमा कला – शिशुपाल वध के बाद भी करुणा
- पूर्णता कला – सभी कलाओं का अद्भुत संतुलन
श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का विस्तार (1 से 8)
1. ज्ञान कला (Divine Knowledge)
अर्थ:
ज्ञान कला वह दिव्य शक्ति है जिससे कृष्ण ने धर्म, कर्म और मोक्ष का सटीक ज्ञान दिया। उनका ज्ञान केवल शास्त्रों का पाठ नहीं था, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाता था।
कथाएँ और संदर्भ:
- महाभारत के युद्धभूमि में गीता का उपदेश।
- अर्जुन के मोह का निवारण कर उसे कर्तव्य का बोध कराना।
- उद्धव गीता में भक्ति और विरक्ति का अद्भुत समन्वय।
महत्व:
यह कला हमें बताती है कि जीवन में सबसे बड़ी शक्ति सही दृष्टिकोण है। कृष्ण ने दिखाया कि ज्ञान केवल ग्रंथों में नहीं, कर्म में प्रकट होता है।
2. ऐश्वर्य कला (Opulence)
अर्थ:
ऐश्वर्य का मतलब है असीम सम्पत्ति, सौंदर्य और आकर्षण। कृष्ण के पास न केवल भौतिक ऐश्वर्य था, बल्कि दिव्य ऐश्वर्य भी।
कथाएँ और संदर्भ:
- द्वारका का वैभव — 16,108 रानियाँ और 9 लाख महल।
- गोपियों और भक्तों को साधारण कुटिया में भी दिव्यता का अनुभव कराना।
- नर-नारायण रूप में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी होना।
महत्व:
ऐश्वर्य कला हमें सिखाती है कि वास्तविक ऐश्वर्य बाहरी वैभव में नहीं, बल्कि हृदय की समृद्धि में है।
3. शक्ति कला (Power/Energy)
अर्थ:
शक्ति कला कृष्ण की योगमाया और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है। वे सभी शक्तियों के स्रोत हैं — प्रकृति, माया और योगशक्ति।
कथाएँ और संदर्भ:
- पूतना वध में मात्र स्पर्श से विष का निवारण।
- कालिय नाग को दबाकर यमुना को शुद्ध करना।
- सुदर्शन चक्र की दिव्य शक्ति का संचालन।
महत्व:
यह कला सिखाती है कि आध्यात्मिक शक्ति भौतिक शक्ति से श्रेष्ठ है। जब भीतर ऊर्जा शुद्ध होती है, तभी बाहर का संसार बदलता है।
4. बल कला (Strength)
अर्थ:
बल कला शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की शक्ति का सामंजस्य है।
कथाएँ और संदर्भ:
- गोवर्धन पर्वत को छोटी उंगली पर धारण करना।
- कंस का वध कर मथुरा को अत्याचार से मुक्त करना।
- जरासंध, शिशुपाल, नरकासुर जैसे असुरों का संहार।
महत्व:
बल कला हमें याद दिलाती है कि असली ताकत धर्म के लिए प्रयुक्त शक्ति है, न कि अत्याचार के लिए।
5. वीर्य कला (Valour)
अर्थ:
वीर्य का अर्थ केवल पराक्रम नहीं, बल्कि आत्मसंयम और धैर्य भी है।
कथाएँ और संदर्भ:
- महाभारत में अर्जुन का सारथी बनना — बिना हथियार लिए भी विजय दिलाना।
- युद्धभूमि में धर्म और न्याय के लिए खड़े रहना।
- गोपियों के प्रेम में भी मर्यादा बनाए रखना।
महत्व:
वीर्य कला यह सिखाती है कि सच्चा वीर वह है जो अपनी इंद्रियों पर विजय पा ले।
6. तेज कला (Radiance)
अर्थ:
तेज कला कृष्ण के आकर्षक व्यक्तित्व और दिव्य आभा का प्रतीक है।
कथाएँ और संदर्भ:
- उनका श्याम वर्ण और पीताम्बर धारण करते ही लोगों का मोहित हो जाना।
- बांसुरी की ध्वनि से वृंदावन का हर प्राणी मंत्रमुग्ध होना।
- कुरुक्षेत्र में विराट रूप दिखाकर समस्त योद्धाओं को चकित करना।
महत्व:
तेज कला हमें बताती है कि आभा भीतर की पवित्रता से आती है, न कि बाहरी रूप से।
7. वीत-राग कला (Detachment from Desires)
अर्थ:
वीत-राग का अर्थ है आसक्ति से मुक्त होकर कर्म करना। कृष्ण सदा संसार में रहते हुए भी संसार से परे रहे।
कथाएँ और संदर्भ:
- रासलीला में गोपियों के साथ रहते हुए भी पूर्णतः निर्लिप्त रहना।
- महाभारत में कौरव-पांडव दोनों से समदर्शी भाव रखना।
- राजमहलों में ऐश्वर्य के बीच भी योगी बने रहना।
महत्व:
यह कला सिखाती है कि सच्चा त्याग भीतर का होता है, बाहर का नहीं।
8. करुणा कला (Compassion)
अर्थ:
करुणा कला कृष्ण की दया और प्रेम का सर्वोच्च रूप है।
कथाएँ और संदर्भ:
- सुदामा को गले लगाकर राजसी सम्मान देना।
- द्रौपदी की लाज बचाना।
- शिशुपाल को 100 अपराधों के बाद भी क्षमा करना।
महत्व:
करुणा कला हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की सबसे बड़ी पहचान उनकी करुणा है।
श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का विस्तार (9 से 16)
9. माधुर्य कला (Sweetness/Charm)
अर्थ:
माधुर्य कला कृष्ण के अद्भुत आकर्षण और प्रेममय स्वरूप का प्रतीक है। यह केवल बाहरी सौंदर्य नहीं, बल्कि वह आंतरिक मधुरता है जिससे हर जीव उनसे जुड़ जाता है।
कथाएँ और संदर्भ:
- वृंदावन की रासलीला, जिसमें गोपियों ने कृष्ण के माधुर्य को परमात्मा के प्रेम के रूप में अनुभव किया।
- बांसुरी की धुन सुनकर गोप-गोपियाँ अपना सब कुछ छोड़ उनके पास दौड़ आती थीं।
- मीरा और सूरदास जैसे भक्तों ने उनके माधुर्य को भक्ति का सर्वोच्च रूप माना।
महत्व:
माधुर्य कला हमें बताती है कि ईश्वर का प्रेम आकर्षण नहीं, आत्मा का समाधान है। यह हमें भीतर से संतुलित और पूर्ण बनाती है।
10. कीर्तन कला (Devotional Singing & Music)
अर्थ:
कीर्तन कला संगीत और भक्ति के अद्भुत संगम का प्रतीक है। कृष्ण की बांसुरी की धुन आज भी भक्ति का सर्वोच्च साधन मानी जाती है।
कथाएँ और संदर्भ:
- रासलीला के समय बांसुरी की धुन से ब्रज का वातावरण दिव्य हो जाता था।
- गोपियों का नाम-संकीर्तन, जिसमें वे कृष्ण प्रेम में डूबकर नृत्य करती थीं।
- आधुनिक काल में हरिनाम संकीर्तन आंदोलन (चैतन्य महाप्रभु) इसी कला का विस्तार है।
महत्व:
यह कला सिखाती है कि भक्ति में संगीत सबसे सीधा मार्ग है ईश्वर तक पहुँचने का।
11. लीला कला (Playfulness & Divine Pastimes)
अर्थ:
लीला कला वह है जिससे भगवान संसार में रहते हुए भी अपनी दिव्य लीलाओं के माध्यम से भक्तों को प्रेम, आनंद और धर्म का संदेश देते हैं।
कथाएँ और संदर्भ:
- बाल लीलाएँ — माखन चोरी, गोपियों से शरारतें।
- गोवर्धन पूजा — प्रकृति और ईश्वर के संबंध को समझाना।
- महाभारत में सारथी बनकर धर्म की रक्षा करना।
महत्व:
लीला कला बताती है कि ईश्वर खेलते-खेलते भी गहरा संदेश दे सकते हैं।
12. धैर्य कला (Patience)
अर्थ:
धैर्य कला कठिन परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखने की क्षमता है।
कथाएँ और संदर्भ:
- कुरुक्षेत्र युद्ध में धर्म-अधर्म की उलझन के बीच धैर्य बनाए रखना।
- अपने जीवनभर अन्याय और अपमान सहने के बावजूद शांत रहना।
- गोपियों और भक्तों की व्याकुलता को धैर्य से संभालना।
महत्व:
धैर्य कला हमें सिखाती है कि सफलता का आधार धैर्य है, क्योंकि बिना धैर्य के ज्ञान और शक्ति भी अधूरी हैं।
13. संयम कला (Self-Control)
अर्थ:
संयम कला इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण की क्षमता है। कृष्ण का जीवन संयम का अद्भुत उदाहरण है।
कथाएँ और संदर्भ:
- गोपियों के प्रेम में रहते हुए भी पूर्णतः योगी बने रहना।
- राजसत्ता और वैभव के बावजूद भोग-विलास में न फँसना।
- शत्रुओं पर भी संयम रखकर उचित समय पर ही युद्ध करना।
महत्व:
संयम कला बताती है कि वास्तविक योगी वही है जो परिस्थितियों में बहकर भी अपने मूल स्वरूप को न भूले।
14. क्षमा कला (Forgiveness)
अर्थ:
क्षमा कला करुणा और प्रेम का विस्तार है। कृष्ण ने जीवनभर क्षमा को अपनाया।
कथाएँ और संदर्भ:
- शिशुपाल को सौ अपराधों तक क्षमा करना।
- रुक्मिणी के भाई रुक्मी को युद्ध में हराकर भी न मारना।
- कौरवों के अत्याचारों के बावजूद शांति के संदेश देना।
महत्व:
क्षमा कला हमें बताती है कि क्षमा कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी शक्ति है।
15. सत्य कला (Truthfulness)
अर्थ:
सत्य कला धर्म और न्याय के पालन का प्रतीक है। कृष्ण का हर कार्य सत्य की स्थापना के लिए था।
कथाएँ और संदर्भ:
- गीता में “सत्यमेव जयते” का संदेश।
- धर्मराज युधिष्ठिर को सत्य का पालन करने की शिक्षा।
- युद्ध में भी अधर्म का अंत कर धर्म की रक्षा करना।
महत्व:
सत्य कला हमें सिखाती है कि ईश्वर का असली स्वरूप सत्य है, और जो सत्य को अपनाता है, वह ईश्वर को पा लेता है।
16. पूर्णता कला (Integration of All Qualities)
अर्थ:
पूर्णता कला सभी कलाओं का संगम है। कृष्ण में ज्ञान, बल, करुणा, माधुर्य, संयम — सब एक साथ थे।
कथाएँ और संदर्भ:
- बालक, मित्र, प्रेमी, योद्धा, गुरु — हर रूप में पूर्ण।
- गोवर्धन लीला से लेकर गीता उपदेश तक — हर कार्य दिव्य।
- संसार में रहते हुए भी सदैव परमात्मा से जुड़ाव।
महत्व:
पूर्णता कला बताती है कि जब इंसान हर गुण में संतुलन बना ले, तभी वह पूर्ण जीवन जी सकता है।
शास्त्रीय संदर्भ, विज्ञान, भक्ति और जीवन में महत्व
शास्त्रों और पुराणों में 16 कलाओं का वर्णन
भागवत पुराण
- श्रीकृष्ण की बाल और यौवन लीलाओं में 16 कलाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है।
- बालक कृष्ण की माखन चोरी, कालिय मर्दन, गोवर्धन धारण — यह सब उनकी शक्तियों का संकेत हैं।
- रासलीला अध्याय में उनका माधुर्य और करुणा प्रकट होती है।
विष्णु पुराण
- विष्णु पुराण में कहा गया है — “कृष्ण पूर्णावतार हैं, जिनमें सोलह कलाएँ पूर्ण रूप से विद्यमान हैं।”
- यहाँ कृष्ण के दिव्य सौंदर्य और लीला की तुलना पूर्ण चंद्रमा से की गई है।
हरिवंश पुराण
- महाभारत के इस उपपुराण में कृष्ण की जन्म से लेकर द्वारका तक की कथाओं में उनकी कलाओं का वर्णन है।
गीता के श्लोक
- “मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय” — कृष्ण का ऐश्वर्य और पूर्णता।
- “योगेश्वरः कृष्णः” — अर्जुन के रथ के सारथी रूप में योगेश्वर की भूमिका।
चंद्रमा और कलाओं का संबंध
- संस्कृत में कला का अर्थ चंद्रमा की कलाओं से भी है।
- पूर्णिमा पर चंद्रमा में 16 कलाएँ पूर्ण रूप से प्रकट होती हैं।
- कृष्ण का जन्म अष्टमी को हुआ, परंतु उनके भीतर पूर्ण 16 कलाएँ थीं, इसलिए उन्हें पूर्णचंद्र कहा जाता है।
विज्ञान की दृष्टि से 16 कलाएँ
मानव व्यक्तित्व और 16 कलाएँ
- आधुनिक मनोविज्ञान मानता है कि मनुष्य के व्यक्तित्व में 16 मुख्य गुण होते हैं।
- नेतृत्व, करुणा, ज्ञान, रचनात्मकता, धैर्य — ये सभी गुण कृष्ण में चरम पर थे।
मस्तिष्क की 16 क्षमताएँ
- न्यूरोसाइंस के अनुसार मानव मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में भावनाएँ, स्मृति, तर्क, करुणा और रचनात्मकता निवास करती हैं।
- कृष्ण में इन सभी क्षमताओं का संतुलन पूर्ण था — यही “पूर्णावतार” का वैज्ञानिक संकेत है।
भक्ति मार्ग में 16 कलाओं का महत्व
चार भक्ति भाव और कलाएँ
- दास्य भाव (सेवक भाव): कृष्ण की करुणा और सत्य कला प्रकट होती है।
- सखा भाव (मित्र भाव): माधुर्य और लीला कला का अनुभव।
- माधुर्य भाव (प्रेम भाव): कीर्तन और माधुर्य कलाओं की पराकाष्ठा।
- वत्सल्य भाव (माता-पिता भाव): धैर्य और करुणा कला।
गोपियों की भक्ति
- गोपियों ने कृष्ण के माधुर्य और लीला कला को आत्मसात किया।
- उनका प्रेम शुद्ध और निष्काम था — यही पूर्णता कला का अनुभव है।
जीवन में इन कलाओं का अपनाने का तरीका
1. ध्यान और मंत्रजप
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप मन को करुणा और शांति प्रदान करता है।
- ध्यान में कृष्ण की बांसुरी और माधुर्य कला को अनुभव करना।
2. कीर्तन और भजन
- हरिनाम संकीर्तन से संगीत और भक्ति का संगम।
- मन को आनंदित करने का सबसे सरल उपाय।
3. सेवा और करुणा
- दूसरों की मदद कर करुणा और क्षमा कला को अपनाना।
- समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाना।
4. संयम और धैर्य
- कठिन परिस्थितियों में भी संतुलन बनाए रखना।
- जीवन के उतार-चढ़ाव को कृष्ण की तरह खेल समझना।
अन्य अवतारों से तुलना
रामावतार
- राम में 12 कलाएँ थीं — धर्म, मर्यादा, सत्य का आदर्श।
- कृष्ण में 16 कलाएँ थीं — धर्म के साथ प्रेम, माधुर्य और लीला भी।
परशुराम, नरसिंह आदि
- इन अवतारों में क्रोध और शक्ति प्रमुख थी।
- कृष्ण में करुणा और प्रेम के साथ शक्ति का संतुलन भी था।
FAQs
प्र. 1: 16 कलाओं का पहला उल्लेख कहाँ मिलता है?
उत्तर: विष्णु पुराण और भागवत पुराण में।
प्र. 2: क्या इंसान भी 16 कलाएँ प्राप्त कर सकता है?
उत्तर: साधना, भक्ति और आत्मसंयम से कुछ कलाएँ जागृत की जा सकती हैं, परंतु पूर्णता केवल भगवान में है।
प्र. 3: क्यों कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया?
उत्तर: क्योंकि उनमें समस्त दिव्य शक्तियाँ और सभी 16 कलाएँ विद्यमान थीं।
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण केवल एक देवता नहीं, बल्कि पूर्णता का प्रतीक हैं। उनकी 16 कलाएँ हमें सिखाती हैं —
- ज्ञान से विवेक लाओ,
- बल से धर्म की रक्षा करो,
- करुणा से सबको अपनाओ,
- माधुर्य से प्रेम फैलाओ,
- और संयम से स्वयं को साधो।
आधुनिक जीवन में भी यदि हम इन कलाओं को अपनाएँ, तो हमारा जीवन संतुलित, आनंदमय और दिव्य बन सकता है।